मोहिता जगदेव
उग्र प्रभा समाचार,छिंदवाड़ा
म. प्र. आंचलिक साहित्यकार परिषद की गोष्ठी आयोजित
"कविता अदृश्यों को दर्शनीय कराने की अनुभूत अभिव्यक्ति है": अवधेश तिवारी
कविता कवि के शून्य हो जाने से उमड़ पड़ती है ।" कविता वही जो समझने से पहले समझ में आ जाए ": प्रो. अमर सिंह
उग्र प्रभा समाचार,छिंदवाड़ा: शासकीय जवाहर कन्या माध्यमिक शाला सब्जी मंडी में आयोजित म. प्र. आंचलिक साहित्यकार परिषद की गोष्ठी में पूर्व आकाशवाणी उद्घोषक अवधेश तिवारी ने ग्रामीण परिवेश में मोटरसाइकल के आने पर ग्रामीणों की जिज्ञासा पर यूँ कविता पढ़ी "आज मेरे गांव पहली बार आई फटफटी, आग जैसे लग गई हो, लोग दौड़े आ रहे हैं। प्रो. अमर सिंह ने कविता को कुछ यों परिभाषित किया, "कविता साहित्य का ताज है और उर में उठे उद्गारों का गीत है। कविता कवि के शून्य हो जाने के भाव से उमड़ पड़ती है। कविता वही जो समझने से पहले समझ में आ जाए। कवि के स्वयं से झगड़ने से कविता जन्म लेती है। वरिष्ठ कवि नन्द कुमार दीक्षित ने मां सरस्वती से विश्व कल्याण हेतु आराधना की "कलुषित मन के वातायन में, सुरभित पुष्प खिला दे, द्वार द्वार पर सद्भावों के, अगणित दीप जला दे। सौंसर के कवि एस. आर. शेंडे ने वक्त रहते चेतनशील हो जाने पर "वक्त के पहिए संग जीवन गुजर रहा है", तो राजेंद्र यादव ने यादों के न भूलने पर "आंख से आंसू बहाती रही है , ये कैसी याद है, जाती नहीं है", कविता पढ़ी। वरिष्ठ कवि प्रभुदयाल श्रीवास्तव ने "चिड़िया रानी, चिड़िया रानी, हंस कहां पर रहते हैं, काम भलाई के जो करते, हंस उन्हीं को कहते हैं", अपनी बाल कविता में दर्शन को जोड़ दिया। रामलाल सराठे रश्मि ने "आपरेशन सिंदूर तो एक बहाना था, पाक ऋण को चुकाना था" भाव से कविता पढ़कर राष्ट्रप्रेम उड़ेल दिया। नेमीचंद व्योम ने" पुरवा जो मचली हल्की हल्की, प्रेम पराग लिए हृदय में" कविता पढ़ी।
आपरेशन सिंदूर तो एक बहाना था, पाक ऋण को चुकाना था : रामलाल सराठे 'रश्मि'
जिंदगी सुबह है तो मौत है शाम, जिंदगी काम है और मौत है काम तमाम: हैदर अली
नन्द किशोर दीक्षित ने" शिकवा नहीं है, तुमसे, गलती हमारी थी, चमकती रेत में हमने, हीरा को टटोला था " कविता पढ़ी। श्रीमती अनुराधा तिवारी "सत्य सनातन संस्कृति को भूल गया इंसान है, आगे बढ़ने की चाहत में, खो बैठा पहचान है।" अशोक जैन ने पाश्चात्य अंग्रेजी कवियों का हिन्दी काव्यानुवाद कुछ यों प्रस्तुत किया,"माना अबके जख्म बड़े ही गहरे हैं, सूरज पर भी अब राहु के पहरे हैं। हैदर अली ने अपनी कविता यों सुनाई "जिंदगी सुबह है तो मौत है शाम, जिंदगी काम है और मौत है काम तमाम। मोहिता मुकेश कमलेंदु ने अपनी कविता "अश्क आंखों में मत आने दो, उन्हें भीतर ही मुस्कराने दो, मत रखो शब्दों को बंधन में, उन्हें कविता की शकल पाने दो।" अंकुर बाल्मीकि "दिखाबे की नौटंकी में अपनत्व का नाटक" कथानक से व्यंग्य रचना पढ़ी।