मोहिता जगदेव
उग्र प्रभा समाचार ,छिंदवाड़ा
*आञ्चलिक साहित्यकार- परिषद,छिंदवाड़ा*
*उच्चारण-दोष हमारे व्यक्तित्व को किस तरह प्रभावित करता है*
हमारे उच्चारण सही होते हैं तो बच्चों को भी सही उच्चारण का प्रशिक्षण मिलता तथा धीरे-धीरे उनकी वाणी कानों में शहद घोलने लगती है:अवधेश तिवारी
व्यक्ति की ऊंचाई उतनी ही होती है जितनी ऊँचाई मातृभाषा द्वारा अर्जित उसके शब्दों की होती है : प्रो अमर सिंह
उग्र प्रभा समाचार ,छिंदवाड़ा: विगत 27 अक्टूबर,रविवार को स्थानीय पेंशनर्स- सदन में आञ्चलिक साहित्यकार-परिषद की छिंदवाड़ा- इकाई की ओर से मासिक काव्यगोष्ठी के साथ *"कविता-पाठ में उच्चारण-दोष"* विषय पर संगोष्ठी संपन्न हुई । संगोष्ठी में उपस्थित कवियों के साथ-साथ परिषद के अध्यक्ष अवधेश तिवारी ने उच्चारण का सोदाहरण महत्व बताते हुए विभिन्न शब्दों के मानक उच्चारणों पर चर्चा की । जाने-माने रचनाकार श्री नेमीचंद 'व्योम' विजय आनंद दुबे,डॉ अशोक जैन,जनाब हैदर अली ख़ान तथा अन्य सभी उपस्थित वक्ताओं ने भी उच्चारण के महत्व पर अपने विचार रखे और कार्यक्रम के अंत में यशस्वी वक्ता डॉक्टर अमर सिंह ने अपना विद्वत्तापूर्ण वक्तव्य देकर वहाँ उपस्थित सभी सदस्यों को मार्गदर्शन देते हुए हर्ष से अभिभूत कर दिया।वाग्भूषणं भूषणम् । वाणी का आभूषण ही सबसे बड़ा आभूषण है। जैसे ही व्यक्ति बोलता है,उसके व्यक्तित्व का साक्षात्कार हो जाता है। उसके व्यक्तित्व की ऊँचाई और गहराई उसके द्वारा अभिव्यक्त शब्दों से तत्काल पता चल जाती है। शब्द यदि सही ढंग से उच्चरित हो तो शाखा पर खिले हुए उस फूल की तरह होता है, जिसमें जीवन,मकरंद तथा सुगंध तीनों होते हैं। लेकिन शब्द का उच्चारण भ्रष्ट हो जाए तो शब्द सूखे फूल की तरह इन तीनों गुणों से रहित हो जाता है। ग़लत ढंग से उच्चरित शब्द अर्धमृत होता है। हमारे उपनिषदों में कहा गया है कि सही ढंग से उच्चरित शब्द इहलोक और परलोक की सभी कामनाएँ पूरी करता है अर्थात शब्द कल्पतरु बन जाता है, इसलिए शब्द को ब्रह्म भी कहा गया है। जब शब्द सही ढंग से उच्चरित होता है तो उसकी सुगंध, रूप, रंग केवल शब्द तक सीमित नहीं रहते,वह हमारे जीवन में भी अभिव्यक्त होने लगता है। लेकिन त्रुटिपूर्ण उच्चारण हमारे प्रभा-मंडल को तत्काल आधा कर देता है । डॉ अमर सिंह कहते हैं कि व्यक्ति की ऊंचाई उतनी ही होती है जितनी ऊँचाई मातृभाषा द्वारा अर्जित उसके शब्दों की होती है । इस संबंध में उदाहरण देते हुए परिषद के अध्यक्ष अवधेश तिवारी ने बताया, यदि हमारे उच्चारण सही होते हैं तो बच्चों को भी सही उच्चारण का प्रशिक्षण मिलता तथा धीरे-धीरे उनकी वाणी कानों में शहद घोलने लगती है। इस अवसर पर उन शब्दों की उदाहरण-सहित चर्चा की गई जिनमें प्रायः उच्चारण- दोष होते हैं, जैसे-
१- प्रमुखतया 'स' तथा 'श'वर्ण में दोष अधिकांश लोगों से होता है जैसे शंकर को संकर,शेर को सेर कहना किंतु इससे भी अधिक गंभीर दोष 'स' को 'श'बोलकर किया जाता है, जैसे कुछ लोग सुंदरी को शुन्दरी, सरौता को शरौता बोलते हैं । हैदर अली ख्रान जी ने इसी उदाहरण पर अपनी कविता भी प्रस्तुत की ।
२- इसी तरह श्रीमती, श्रद्धा, श्रद्धेय, अश्रु आदि शब्दों में 'श्र' का उच्चारण स +र न होकर श+र होना चाहिए।
३- कई बार 'स' और 'श' एक साथ आते हैं तब उच्चारण में और कठिनाई होती है, जैसे-
प्रशंसा, अनुशासन,शासकीय, सशक्त, प्रशासन इत्यादि।
४- कई बार स,श, और ष तीनों को एक साथ उच्चरित करना पड़ता है, जैसे-
सुश्रुषा
(श्री नेमीचंद जी 'व्योम' ने इस शब्द पर चर्चा करते हुए संस्कृत के कुछ सटीक उदाहरण दिए।)
५- कई बार 'द्य' का उच्चारण 'ध' किया जाता है, जैसे विद्यालय को विध्यालय,महाविद्यालय को महाविध्यालय, विद्यार्थी को विध्यार्थी आदि।
६- कई बार शब्दों में अनावश्यक अनुस्वार लगाए जाते हैं, जैसे-
हाथ को हॉंत कहना, घास को घाँस, हाथी को हाँती' या साथी को सॉंथी कहना।
७- आजकल गूगल के कुछ एप चंद्रबिंदु का उपयोग नहीं कर रहे हैं जबकि यह त्रुटिपूर्ण है । अतः रंग और रँग, संग और सॅंग, हंस और हँस इत्यादि शब्दों में उच्चारण के अनुसार अनुस्वार/ चंद्रबिंदु के यथोचित प्रयोग का ध्यान रखा जाए।
८- इसी तरह की त्रुटि 'छ' तथा 'क्ष' के प्रयोग में होती है- छतरी तथा क्षत्रिय, छ्त एवं क्षत, इसके अलावा अक्षत,क्षमा,कक्षा,रक्षा, परीक्षा, दक्ष रक्ष, दीक्षित, प्रशिक्षित आदि शब्दों में 'छ'के उच्चारण के समय जीभ सीधी रहेगी (दन्तस्थ) और 'क्ष' के उच्चारण के समय जीभ को मोड़कर (तालव्य) उच्चारण करना होगा।
९- गृह, वृक्ष, कृष्ण आदि शब्दों में 'इ' का प्रच्छन्न प्रयोग होगा, किंतु ग्रह, क्रम,भ्रमआदि में नहीं।
१०- इसी तरह नुक्ते. वाले उर्दू-अरबी के शब्दों के प्रयोग में ध्यान रखना चाहिए,जैसे-
ग़ज़ल, काग़ज़, राज़, दाग और दाग़, जलील और ज़लील, कर्ज़,, मर्ज़, फ़र्ज़, ज़ुल्म, हक़ीक़त तूफ़ाँ, इश्क़ आदि ।
११- 'ज'और 'ज़' का एक साथ प्रयोग करते समय शब्दों के उच्चारण में कठिनाई आती है, इसका ध्यान रखें, जैसे-
जज़्बात,इजाज़त,जंज़ीर आदि ।
१२- 'व' और 'ब' एक साथ प्रयोग करते समय भी इसी तरह की सतर्कता रखनी पड़ती है,जैसे-
जवाब,हवीब आदि ।
१३- सुरभि- सुरभी, अवधि -अवधी, हरि-हरी, करि- करी - इस तरह के शब्दों के उच्चारण के समय भी विशेष ध्यान रखना चाहिए अन्यथा उच्चारण-दोष होते हैं ।
१४- शीघ्रता से उच्चारण करते समय हम 'जनता' को 'जन्ता' और 'गायक कलाकार' को 'गायक्कलाकार' बोल देते हैं । यह शब्द-संकोच के उदाहरण हैं। शब्द-संकोच की तरह शब्द-प्रसार का ध्यान न रखने पर भी उच्चारण- दोष होते हैं, इसका ध्यान कैसे रखा जाए इस पर भी चर्चा हुई।
१५- अक्सर लोग संबोधन में अनुस्वार लगा देते हैं, जैसे, साथियों, श्रोताओं, मित्रों, भाइयों, बहनों,आदि । ध्यान रखना चाहिए कि संबोधन में कभी अनुस्वार नहीं लगाए जाते। हाँ, संज्ञा बहुवचन के रूप में जब उस शब्द का प्रयोग होता है तब अनुस्वार अवश्य लगाए जाते हैं, जैसे-
साथियो! मैं अपने सभी साथियों से कहना चाहता हूँ कि...
भाइयो! हम सबसे पहले अपने सभी उपस्थित भाइयों का स्वागत करते हैं ।
इत्यादि,
कुछ फिल्मी गीतों में भी इसके उदाहरण मिल जाते हैं,जैसे- *बहारो फूल बरसाओ मेरा महबूब आया है*.. बहारो में अनुस्वार नहीं है
मेरे देश प्रेमियो, आपस में प्रेम करो देश प्रेमियो
दोनों स्थानों पर देशप्रेमियो शब्द संबोधन के रूप में आया है अतः दोनों में अनुस्वार नहीं है ।
कुल मिलाकर उच्चारण दोष से जुड़ी उक्त चर्चा तथा काव्यगोष्ठी चर्चा काफी सारगर्भित रही । सभी माननीय रचनाकारों ने इसमें रुचि-पूर्वक भाग लिया । आयोजन के पश्चात विदा होते समय लोगों ने अनुभव किया कि आज हम कुछ नया लेकर जा रहे हैं। कार्यक्रम का संचालन कवयित्री मोहिता जगदेव जी ने किया।
आप सबका आभार,धन्यवाद।
भवदीय, अवधेश तिवारी
अध्यक्ष,
रामलाल सराठे,
सचिव