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कर्म का महात्म्य गीता जैसा कहीं नहीं मिलता है ": प्रो. सकरलाल बट्टी

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        मोहिता जगदेव

     उग्र प्रभा समाचार,छिंदवाड़ा

चांद कालेज में भारतीय ज्ञान परम्परा पर कार्यशाला का आयोजन 

"कौशल रहित मनुष्य पशुवत विचरण करता है": प्रो. अमर सिंह

"भारतीय संस्कृति संस्कारित आचरण की शिक्षाओं  की अद्भुत वैचारिकी है ": प्रो. रजनी कवरेती 

उग्र प्रभा समाचार, चांद छिंदवाड़ा: शासकीय महाविद्यालय चांद में भारतीय ज्ञान परम्परा की श्रंखला के अंतर्गत नैतिक मूल्य और शिष्टाचार विषय पर आयोजित व्याख्यान में प्राचार्य डॉ अमर सिंह ने कहा कि भारतीय ज्ञान परम्परा में संतुलित जीवन जीने के लिए आचरण के प्रबंधन हेतु सभी आवश्यक वैचारिकी उपलब्ध है। यहां तक कि कला, साहित्य, विज्ञान अथवा बिना किसी विशेषज्ञता के मनुष्य को पशुवत माना गया है। भारतीय संस्कृति में चरित्र निर्माण के विविध आयामों की संपूर्ण अभिव्यक्ति है। प्रो . रजनी कवरेती ने कहा कि समस्त धर्म आचरण को संस्कारित करने की अद्भुत चेतना विकसित करते हैं। समस्त वेद, पुराण, उपनिषद, गीता, महाभारत और रामायण जैसे ग्रंथ तमाम नैतिक मूल्यों के शिष्टाचार की शिक्षाओं से भरे पड़े हैं, उन्हें बस अपने चरित्र में उतारने की जरूरत है। प्रो. जी.  एल. विश्वकर्मा ने कहा कि विनम्रता, धैर्य, सत्य, शील, सहानुभूति, अहिंसा, परोपकार जैसे दुर्लभ मानव गुणों को जीवन में उतारकर व्यक्ति अद्भुत रूप से प्रभावी व्यक्तित्व विकसित कर सकता है।

कार्यशाला संयोजक प्रो. सकरलाल बट्टी ने कहा कि गीता में कर्म के महात्म्य को जिस खूबसूरती से बताया गया है, वैसा अन्यत्र कहीं नहीं मिलता है। चार वेद, अठारह पुराण और एक सौ आठ उपनिषद सभी परोपकार कर पुण्य कमाने पर जोर देते हैं। प्रो . संतोष कुमार उसरेठे ने कहा कि अतिथि देवो भव, पूरे विश्व को अपना परिवार मानने और बड़ों का सम्मान करने की परंपरा भारतीय ज्ञान परम्परा की धुरी है। प्रो. सुरेखा तेलकर ने कहा कि भारतीय ज्ञान परम्परा मनुष्यता निर्माण के विविध संदर्भों को उजागर करती है। शांतिपूर्ण सहअस्तित्व, प्राणियों के लिए सेवा भाव और मनसा वाचा कर्मणा से किसी का अहित न करना सनातन संस्कृति की मूल शिक्षाएं हैं।

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