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म. प्र. शिक्षक संघ द्वारा "इंडिया से भारत की ओर" विषय पर व्याख्यान गोष्ठी सम्पन्न

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"भारत आध्यात्मिक शाश्वत मानव मूल्य निधि तो इंडिया सकरे संस्कार": प्रो. सिंह

"भारत करुणा का अनुशासन तो इंडिया भौतिक लोलुपता ":प्रो. सिंह 

"भारत सार्वभौमिक लोकहित है तो इंडिया निहित स्वार्थ सिद्धि": प्रो. सिंह

"भारत शुद्ध हृदय चिन्तन है तो इंडिया वाह्य वैभव कृत्रिम दिखावा": प्रो. सिंह 



छिंदवाड़ा उग्र प्रभा समाचार - : म. प्र. शिक्षक संघ द्वारा " इंडिया से भारत की ओर" विषय पर एम. एल. बी. कन्या उ. मा. शाला छिंदवाड़ा में आयोजित व्याख्यान में प्रमुख अतिथि वक्ता बतौर बोलते हुए प्रेरक वक्ता प्रो. अमर सिंह ने कहा कि भारत राष्ट्र को विकसित राष्ट्र की पहिचान दिलाने में हमें भारतीय संस्कृति के दुर्लभ पुरातन मूल्यों की धरोहर को आगे बढ़ाते हुए विदेशी सकरी सोच से निर्मित इंडिया की अवधारणा से निजात पानी होगी। जहां भारतीयता एक उत्कृष्ट आध्यात्मिक आयाम है तो इंडिया जीवन के सतही सरोकार। भारत धरा के जीव जगत के प्रति करुणा है तो इंडिया संवेदना शून्य स्वार्थपरकता। भारत शाश्वत मानव मूल्यों की निधि है तो इंडिया सकरे संस्कारों की भौतिक लोलुपता। भारत अगाध सार्वभौमिक आध्यात्मिक उत्सर्ग है तो इंडिया अनैतिक व्यवहार का व्यापार। भारत राष्ट्र करुणा का अनुशासन है तो इंडिया बेरहम अमानवीय असंतुलित व्यवहार। भारत के केंद्र में लोकमान्य मान्यताओं में जनहित है तो इंडिया में निहित स्वार्थ सिद्धि। भारत आचरण की सभ्यता से सराबोर है तो इंडिया विकास की कोरी संकीर्ण मानसिकता। भारत अंतःकरण को परिष्कृत परिमार्जित करने का देशी अंदाजों का चिन्तन है तो इंडिया महज विदेशी वैभव की तात्कालिक वाह्य अल्पकालिक खुशबू।

भारतीयता सृष्टि की मूलभूत रचना से जुड़ने की संवेदना में समाहित है। इंडिया शब्द को अंगीकार करने में गुलामी की बू आती है और दासता भाव कचोटता है। भारतीयता अपने में लोकमान्य मान्यताओं को समेंटे हुए है, जबकि इंडिया में हमें आक्रांता का परायापन खलता है। भारत बुद्ध, कबीर, नानक, तुकाराम, बसावा, टैगोर और गांधी की प्रतिष्ठित साझा विरासत के दिव्य उपहार से मस्तिष्क कौंध जाता है। भारत जीवन में जीवंत आत्मीयता से सरोकार रखता है जिसमें भाईचारे को वैश्विक कसौटी पर कसा जाता है। भारत के आंचल में प्राकृतिक जगत में विद्यमान सभी जीव जंतुओं के प्रति अगाध सामूहिक प्रेम है। प्रांतीय उपाध्यक्ष नंद कुमार शुक्ला ने कहा कि भारत में सहिष्णुता, करुणा, सहानुभुति और एकात्म की गहरी भावना भरी है जिसमें स्वयं में सभी प्राणियों की छवि दिखती है। प्रेम संवेदना का संयुक्त रूप उदात्त हो सामाजिक एकजुटता, सर्वजन हिताय न्याय, एकता शक्ति की सर्वोच्चता से प्रभावित नहीं होते हैं। भारत वह है जहां धर्म निरपेक्ष लोकतंत्रात्मक गणराज्य समावेशी राष्ट्रवाद को अपनी आध्यात्मिक ऊर्जा से सिंचित करता है। संघ के जिला अध्यक्ष शशि तिवारी ने कहा कि हमारे मानव मूल्य, संस्कृति, इतिहास और परंपरा सभ्यता के उच्चतम शिखर पर विराजे हैं। जहां बहुलता में अटल विश्वास, पुरुषार्थ में जीवन ध्येय और सत्य अहिंसा के संस्कार कर्म को ही धर्म मानते हैं, वहीं भारत कूट कूट कर भरा पड़ा है। संभागीय कोषाध्यक्ष राजेंद्र सरवरे ने कहा कि शाश्वत सत्य के शिल्प में जब निरंतरता चरितार्थ होती है, जहां अर्थपूर्ण जीवन केंद्र में सत्तारूढ़ है और जहां शरीर, मन, हृदय और आत्मा की शुचिता से चरित्र निर्माण होता है, वहीं भारत बसता है। कोषाध्यक्ष संजय नागदवने ने कहा कि जब जीवन जीने में ईमान सर्वोपरि है, अथाह आत्मविश्वास में धैर्य समाया है और आचरण की सभ्यता व्यक्ति को सहृदयता की यात्रा पर ले जाती है, वहीं भारत का निवास है। श्रीमती संगीता बैंडे ने कहा कि जहां आत्मपरिमार्जन एक सतत प्रक्रिया है, हम कहीं भी हो सकते हैं किंतु आत्मा जहां बसती है और पुण्यभूमि, देवभूमि, कर्मभूमि, भारतखंड, मातृभूमि और भारतमाता सब राष्ट्र के पर्याय हैं, उसे ही भारतवर्ष कहा जाता है। विकास डबली ने कहा कि जहां असत्य से सत्य की ओर, अंधेरे से प्रकाश की ओर और मृत्यु से अमरता की ओर जाते हैं, उसे ही तो भारत कहते हैं। ए पी जे अब्दुल कलाम के शब्दों में: "जहां हृदय में ईमानदारी का जज्बा है, वहां चरित्र में सुंदरता है, जहां चरित्र में सुंदरता है, वहां घरों में एकरूपता है। और जहां घर में एकरूपता है, वहां राष्ट्र में अनुशासन होता है।" कार्यक्रम में म.प्र. शिक्षक संघ छिंदवाड़ा से जुड़े जिले के सभी शिक्षक पदाधिकारी उपस्थित हुए।

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