Type Here to Get Search Results !

चांद कॉलेज की रासेयो द्वारा "अभावों को ताकत में कैसे बदलें"विषय पर व्याख्यान

0


"ऊर्जा जो राह पकड़ती है, वैसे ही परिणाम देती है:" रोशनी श्रीवास

" जीने के पीछे की वजह जीत की मंजिल तय करती है:" रोशनी श्रीवास 

"लक्ष्य पर साधना से बड़ी कोई आराधना नहीं होती है:" प्रो. सिंह 

" जीवन जूझी गई मुश्किलों के अनुपात में आकार लेता है:"प्रो. सिंह 


चांद/छिंदवाड़ा उग्र प्रभा समाचार - : चांद कॉलेज में रासेयो इकाई द्वारा राष्ट्रीय एकता दिवस पर "अभावों को ताकत में कैसे बदलें" विषय पर आयोजित व्याख्यान में प्रमुख वक्ता बतौर बोलते हुए शासकीय उच्चतर माध्यमिक विद्यालय बिछुआ की अंग्रेजी की प्रवक्ता रौशनी श्रीवास ने कहा कि व्यक्ति की ऊर्जा जैसी राह पकड़ती है, वैसे ही परिणाम देती है। ये परिणाम रचनात्मक और विध्वंशक कैसे भी हो सकते हैं। हमारे जीने के पीछे की वजह जीत तय करती है।  अंतर्निहित संभावनाओं का अंतिम दोहन मनुष्य प्रगति का लक्ष्य है। हम क्या हैं, क्यों हैं, जन्म का निमित्त क्या है, यह गंभीर शोध का विषय है, इसी चिंतन से हमारा संसार विस्तार लेता है। बेवजह जीवन बिताना पशुता को बढ़ावा देना है। कष्टों के आगोश में परिष्कार की पूंजी पलटी है। बिना तपे कुंदन सी खुशबू नसीब नहीं होती है। कार्यक्रम अधिकारी प्रो. अमर सिंह ने कहा कि लक्ष्य पर साधना से बड़ी कोई आराधना नहीं होती है। साधना की शक्ति ने सदैव आराधना की शक्ति  को अपने अधीन किया है। जीवन जूझी गई मुश्किलों के अनुपात में आकार लेता है। जिसे अपने होने पर गर्व नहीं, वह सदैव स्वयं का न्यून आकलन ही करेगा, अपने उत्कृष्ठ स्वरूप में तो नहीं रह सकता है। परास्त मानसिकता से विजय हासिल नहीं हो सकती है। हार पहले मानसिक होती है, बाद में असल रूप में घटती है। प्रो. डी. के. गुप्ता ने कहा कि मुश्किलों के पहाड़ को तिनका तिनका करके काटा जा सकता है, जैसे बूंद बूंद मिलकर सागर भरता है। अचानक कुछ भी नहीं होता है, उपलब्धियों के अंबार हेतू  हर पल को अपने पक्ष में करके कर्म का निवेश करना पड़ता है। प्रो. रजनी कवरेती ने कहा कि कर्म हमारा बिना थके पीछा करता है, और हर कर्म का प्रतिफल संबंधित को लौटाता अवश्य है। हमारे कर्म के साथ वैचारिक शुद्धता जुड़ी रहनी चाहिए तभी विशुद्ध परिणाम मिलते हैं। कर्म की शक्ति ने भक्ति की शक्ति को हमेशा परास्त किया है। प्रो.जी.एल.विश्वकर्मा ने कहा कि स्वयं पर संदेह दुर्बलता की निशानी है। दुविधा शक्तिवान को अंजाम तक पहुंचने में सबसे बड़ी चुनौती है। निर्बल बहाने की छत्र छाया में खूब फलते फूलते हैं। प्रो.आर.के. पहाड़े ने कहा कि जिसे लक्ष्य के सिवा सब कुछ दिखे, उसकी ऊर्जा के फ़ायदे दूसरे ही उठाते हैं। जिसके पास खोने को कुछ नहीं होता है, उसके पास कर गुजरने को बहुत होता है। प्रो. विनोद कुमार शेंडे ने कहा कि अगर व्यक्ति कुछ ठान ले तो जरूरतें इंसान से वह करवा लेती हैं जो उसने सोचा तक न हो। सफलता अर्जित की जाती है, चलकर नहीं आती है। जीतने की योग्यता हर रोज बढ़ानी पड़ती है, हाथ पर हाथ रखकर बैठने से  कुछ नहीं होता है। प्रो.सुरेखा तेलकर ने कहा कि जो तोड़े अपनी ही हर दिन हदें, सफ़लता उसके कदम चूमती है। जिनके प्रयासों की ऊंचाई उम्मीद की हदें लांघ जाती हैं, खुशनसीबी उनकी जीहुजीरी में हाजिर रहती है। प्रो.रक्षा उपश्याम ने कहा कि जिन्हें अपने लक्ष्य प्राप्ति की कर्मयज्ञ में आहुति देने की आदत पड़ जाती है, सफ़लता उनका इंतजार करती है, वे सफ़लता का नहीं। संतोष अमोडीया ने कहा कि रूकावटें रोड़े न अटकाये बल्कि सिद्धि प्राप्ति हेतु संकल्प को और सुदृढ़ करे, तभी मनुष्यता बरकरार रह सकती है। सुनील पाटिल ने कहा कि अथाह आत्मविश्वास, अटल उत्साह और अकूत लगन से व्यवधानों के पहाड़ को गिराया जा सकता है। कमलेश चौधरी ने कहा कि जब व्यवसाय व अभिरुचि मिल जाते हैं तो थकान महसूस नहीं होती है। छोटे लक्ष्य रखना घातक पाप होता है।  

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ