"दीप नेह का बुझने न पाए": नंद कुमार दीक्षित
"कविता आह, करुणा व संवेदना का दिव्य सृजन होती है": प्रो.सिंह
"कविता पढ़ कविता लिखना भी सृजन की श्रेणी में आता है": अवधेश तिवारी
रिपोर्ट छिंदवाड़ा:उग्र प्रभा मोहिता जगदेव - आंचलिक साहित्यकार परिषद की आयोजित मासिक काव्य गोष्ठी में पूर्व आकाशवाणी उद्घोषक श्रीअवधेश तिवारी ने मौलिक काव्य सृजन कैसे हो के उत्तर में कहा कि किसी की कविता पढ़कर कोई नई कविता लिखे यह एक सृजनात्मक उपलब्धि है। प्रो. अमर सिंह ने कविता को आह, करुणा और संवेदना की एक धागे में पिरोई वह लड़ी बताया जो पर पीड़ा की साधना में तपकर मनुष्यता का बचाव करती है। प्रो. विजय कलमधार ने प्रतिनिधि कविता को वंचितों के हक की दिव्य आवाज़ का आगाज़ कहा। कवि मनीष जैन अमरवाड़ा ने अपनी कविता यों पढ़ी "कमर की करधनियां बेचो, चाहे बेचो पैरन की पैजनियां शौचालय बनबा दे राजा, पड़ूं तुम्हारे पइयां"। भोले प्रसाद नेमा अमरवाड़ा ने अपनी कविता पढ़ी "तुम्हारे साथ चलने से हम सीख जाएंगे, तुम्हारे रूप से हम सजना सीख जाएंगे।" नंद कुमार दीक्षित "दीप नेह का बुझने न पाए कभी"। नेमीचंद व्योम "मधु घट से खुशियां छलकाती रात चांदनी पूनम की"। स्वप्निल जैन ने "मेहनत जो करता है, वही फल को समझता है", श्रीमती संगीता श्रीवास्तव ने "थोड़ी थोड़ी बचा के रखी है/ अपनी हस्ती बचा के रखी है/ बात मानी है उसकी हमने मगर अपनी मर्जी बचा के रखी है।" कवि बलराम संध्या ने "संबंध इस जगत से तोड़ना चाहता हूं अब खुदा से नाता जोड़ना चाहता हूं", मंजू देशमुख ने "एक कीड़ा अपने पर इतरा रहा है हृदय पाषाण सा कराह रहा है" और युवा कवि प्रत्यूष जैन ने "अन्नदाता की सारी खुशियां पानी ही पानी हैं/ उसकी समृद्धि दिखती है बस अखबारों में और कहानी में"पढ़कर सबको मंत्रमुग्ध कर दिया। दीपशिखा /उमा दीक्षित ने "निज रूप विशाल दिखाती हमें वह भारत की तस्वीर है तुलसी रसखान रहीम पिए वह धेनु का पावन क्षीर है", कवि के. के. मिश्रा कायर ने "पिया गए परदेश मेरे कैसे कटें दिन" , दीपशिखा सागर ने "मां हूं पत्नी हूं बेटी भी हूं, मुझको बरता गया जरूरतों में" गोष्ठी में समा बांध दी। कवि शशांक दुबे ने "वात्सल्य में डूबकर जब मां रोती है तब कविता होती है/ दिल की आवाजें जब बीज बोती है तब कविता होती है"। वरिष्ठ कवि अवधेश तिवारी ने "बचपन में का का खाए थे, भूल गए क्या पांडे जी?
कहां गए वे सौंधे चीला कहां गए वे माड़े जी"एवं प्रो.विजय कलमधार ये है "अपना पर्वत राज सतपुड़ा" कविता का पाठ किया।.....ठाकुर ने फूलों की दुनिया शीर्षक से"अपनों से हरदम मिलाते हैं फूल",
अनुराधा तिवारी ने "तुम आफत को आग लगाते पानी ले फिर तुम्हीं बुझाते" और अंकुर बाल्मिकि ने "मन का गुबार अधरों पर आके अटक गया", राजेंद्र यादव ने "प्रेम, त्याग, मानवता का पहले पाठ पढ़ाओ"एवं कालीदास बघेल ने "मिलती है नसीबों से ये मुहब्बत बनी रहे" कविताएं पढ़ीं। वरिष्ठ कवि लक्ष्मण प्रसाद डहेरिया ने मंहगाई की मार पर कहा कि "सुरसा सी बढ़ रही मंहगाई कैसे मनाऊं त्यौहार", नंदकुमार दीक्षित .......और रणजीत सिंह परिहार ने गीत की अभिलाषा पर कविता पढ़ी "अंधकार का राक्षस दूर भगाएं, हमारा जन्म ही हुआ है इसीलिए"। वहीं वरिष्ठ कवि रामलाल सराठे ने कहा कि"बुझे दीप जलाना बहुत जरूरी है",
श्रीमती मोहिता जगदेव ने नारी के सम्मान और गरिमा के साथ लोकभाषा पर बहुत सुंदर रचना पढ़ी साथ ही कहा - ""बाँट नहीं सकते तुम ,मजहब के नाम पर चाँद ।जैसे बाँट रखा है तुमने ,धर्म के नाम पर इंसान ।''
श्री जयकुमार साइलवार ने भी काव्यपाठ किया।इसके अतिरिक्त श्री दिनेश भट्ट और ओमप्रकाश नयन की भी उपस्थिति उल्लेखनीय रही ।
वरिष्ठ रचनाकार 'रत्नाकर रतन ने "हमने अर्चना के फूल सजाकर रखे हैं"और "नेह का तुम दिया जलाओ मन अंधियारा मिट जाएगा" कविताओं से सबका मन मोह लिया।इस आयोजन में संस्कृत हिंदी की कविताओं का पाठ भी हुआ हिंदी उर्दू की गंगा जमुनी धारा भी वही पारंपरिक छंदों का भी लोगों ने आनंद लिया और अपनी लोक भाषा की सोंधी गंध भी रचनाओं में महसूस की गई।शाम तक निर्विघ्न रूप से चलता हुआ यह कार्यक्रम महाविद्यालय के प्राचार्य डॉ अमर सिंह की अध्यक्षता में संपन्न हुआ। विशिष्ट अतिथि थे प्राध्यापक डॉ विजय कलम धार तथा कार्यक्रम के मुख्य अतिथि थे वरिष्ठ कवि श्री रत्नाकर रतन। आंचलिक साहित्यकार परिषद का संकल्प है कि वह अपनी मातृभाषा के साथ-साथ लोक भाषा के प्रचार-प्रसार के लिए भी समर्पित रहेगी।