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गुरू पीड़ाओं के समंदर को पी कर शंकर बनने की युक्ति बताता है :डाॅ. अमर सिंह

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         मोहिता जगदेव

    उग्र प्रभा समाचार,छिंदवाड़ा 

गुरू की कोख में पलें सृजन के बीज 

शिक्षक छात्रों को अवधारणात्मक ज्ञान को कार्यसिद्धि में बदलवाकर जगत को उपकृत करते हैं

गुरू पीड़ाओं के समंदर को पी कर शंकर बनने की युक्ति बताता है 

गुरु सम्पूर्ण मानवजाति को कीचड़ में धसने से बचने के लिए आगाह करता है

उग्र प्रभा समाचार ,छिंदवाड़ा : शिक्षक बौद्धिक बौने नहीं, मेधा आलोकित छात्र पैदा करते हैं। बदले वक्त के पैकेज में न ढलने वाले शिक्षक नकार दिए जाते हैं। मेधावी छात्र वही होता है जो अभावों में भी बुलंदियों के अंबार लगा दे। सही मायनों में विद्यार्थी वही जो अपनो खोजी बुद्धि से तरसती तकदीर को मुस्कराहट प्रदान करता है।। बिना भावनात्मक जुड़ाव के करिश्माई छात्र का सृजन सर्वथा असंभव है। सच्चे शिक्षक मानक विचार विमर्श के पर्याय बन पारदर्शी कार्यों के सूत्रधार बनते हैं। समाधानों के जनक बनना स्वयं को उस दिशाहीन भीड़ से अलग करना है जो समस्याओं की जनक बनने में कोई कोर कसर बाकी नहीं रखती है।जब तक शिक्षक और छात्र की पारस्परिक भावनात्मक आत्मीयता एक नहीं होगी, तब तक वे एक दूसरे को शैक्षिक अवदानों के दाता/ग्राहक नहीं बन सकेंगे। कोई भी छात्र जीवन में उतनी ही ऊंचाई प्राप्त करता है जितना मजबूत भावनात्मक जुड़ाव उसका अपने गुरू से होता है। जो हर रोज अपनी हदों को तोड़ते हैं, वे ही बेहद बनते हैं। हमारी जंग दुनिया से नहीं, खुद से है, यह हमें हमारे शिक्षक सिखाते हैं। अपनी खुद्दारी को सतत तराशना ही खुदा हो जाना है। जीवन मातम नहीं, उत्सव मनाने के लिए बना है। बेहतरीन खिलाड़ी अंतर्निहित संभावनाओं के वाह्य प्रदर्शन से बनता है। शिक्षा का भास्कर चेतना की बौद्धिक रश्मियों से विश्व कल्याण करता है। बंधनों की अकड़न की जकड़न से मुक्ति ही शिक्षा का केंद्रीय उद्देश्य है।

शिक्षक छात्रों को अवधारणात्मक ज्ञान को कार्यसिद्धि में बदलवाकर जगत को उपकृत करते हैं। संदेह व भय आत्मविश्वास से विकसित होने के मार्ग के सबसे बड़े शत्रु हैं। जिसको ठोकरें चलना सिखाती हैं, उसे गिराना मुश्किल होता है। छात्र गुरू से वह दक्षता हासिल करता है जिसकी मांग बाजार में है। बदलते वक्त के पैकेज के अनुसार अर्जित हुनर कामयाबी दिलाता है। कैरियर वह जो हम अपने साथ लेके चलते हैं। सही गुरू वह सिखाता है जो किताबों में लिखा ही नहीं है, वो राह दिखाता है जब सब राहें बंद हो जाती हैं और वह आग लगाता है जिसमें सारे द्वेष भस्म हो जाते हैं।

गुरू इंसानियत के पाठ में मनुष्यता उकेर कर उत्कृष्टता के रंग भरता है, हादसों से जीवन चुराता है और ठोकरों में चलना सिखाता है। गुरू पीड़ाओं के समंदर को पीकर शंकर बनने की युक्ति बताता है, पैरों में अंगद जैसा आत्मविश्वास भरता है और आसमान में उड़ने की युक्ति सुझाता है। सच्चा गुरू शिष्य के शोक का हरण करता है, कदर करवाने का हुनर देता है और स्वयं का स्वयं से परिचय करवाता है। गुरू हमारी खुद्दारी को बुलंदियों तक पहुंचाता है, कर्मों के पहाड़ से नसीब बनाता है और कौशल वर्धन से क्षमता वर्धन करता है। गुरू क्रिया आधारित तात्विक ज्ञान प्रदाता है, चंचल इंद्रियों को संयमित करने युक्ति बताता है और व्यवहार में आचरण की सभ्यता उतारता है।गुरू शिष्य को कसी हुई कुशाग्र बुद्धि से द्वंद्व समाधान की विश्लेषणात्मक चिंतन प्रदान करता है, चर्म चक्षु से मर्म को समझाता है और जीवन को संपूर्णता में जीने पर बल देता है। सच्चा गुरू उपकरणों की विलासिता के श्राप से बचाता है, जीवन को श्रद्धा पर टिकाता है और जड़ता समाप्त कर सेवा वृत्ति विकसित करता है। गुरू पुरुषार्थ से आत्मोत्कर्ष, सूचनाओं को मेधा में बदलता है और पात्रता वृद्धि के उच्च मानदंड स्थापित करता है। गुरू परिर्वतन के युग में बदलते पैकेज के लिए शिष्य को तैयार करना, चित्त की संस्कार भूमि को उर्वरा शक्ति देना और दिल दिमाक, हृदय और आत्मा को शुचिता भरने का काम एक सहृदय गुरू ही कर सकता है।

शिक्षक विष्णु की प्राणी-पालन- पोषित वैधानिकता का ब्रह्माण्डीय जनऋषि है। महाकाल की त्रिनेत्रिक विध्वंशलीला का सांकेतिक स्थानापन्न है। शिक्षक सर्जना, सतत जीवन- प्रवाह व विनाश के बीज अपनी कोख़ में रखता है। गुरुता संशय, भ्रम, व अविश्वास के पक्षी को आत्मविश्वास के पंख प्रदान करती है। गुरू पल-पल तिल-तिल जलकर अपनी देह की भष्म से अटके हुओं। को गतिशील बनाने का स्थानीय दैवीय माध्यम है। तभी तो उसे शास्त्र पारब्रह्म बोलते हैं। गुरू ईश्वर का वैश्विक विवेचक है। वह नैतिक, व्यावहारिक व खुद करके बताओ जिम्मेदारी का युगीन अंगद है। गुरु कभी मित्र, कभी दार्शनिक तो कभी मार्गदर्शक का किरदार निभाता है। और कब एक से दूसरे किरदार में आ जाता है, पता ही नहीं लगता है।

माँ-बाप के बाद बस एक ही रिश्ता है गुरू का, जो अपने शिष्य से उसकी बढ़ती ऊंचाई से ईर्ष्या नहीं करता है। बाकी तो सब मौके का इंतजार करते हैं कि उनका स्वार्थ का तीर एक भी बेकार न जाए। गुरू मुमुक्षु है, अवतार है, अविजित उपहार है कुदरत की कृपा का। वह असीम है, निस्सीम है, निःशेष है, निर्बाध है, अविकल है, अभेद्य है। शिक्षक की शाला ज्ञान - विज्ञान का अपरिमित प्रयोगधर्मी आश्रय स्थल है। वह प्रकाश की किरण है, प्रकाश की लौ है, प्रकाश स्तंभ है। शिक्षक आदि है, निरंतर है, अंत है। वह सभी निष्ठाओं का केंद्र है, पुराणों का सार है, ब्रह्मांड की हर हल चल उसका व्यापार है। गुरु रीति, नीति व प्रीति के सांस्कृतिक मूल्यों का वाहक है। गुरु सम्पूर्ण मानवजाति को कीचड़ में धसने से बचने के लिए आगाह करता है। गुरु कालजयी सौम्यता, निष्कलंकित सहजता और निष्कपट सरलता का आभूषण है। स्नेहिल सह्रदयता, नैसर्गिक शुचिता व पाण्डित्य प्रदर्शन रहित सुशीलता का वैशिष्य गुरू के पोषण करते हैं।। गुरु एक वशीभूत मंत्र है, उलझनों में यंत्र है और सर्वोपरि मानवों में तत्वज्ञानी संत है।

डॉ. अमर सिंह, 

प्रेरक वक्ता, 

प्राचार्य शासकीय महाविद्यालय चांद,

छिंदवाड़ा(म. प्र.),

M/7898740446

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