Type Here to Get Search Results !

रंगभवन को तरसता छिंदवाड़ा का रंगमंच

0

        मोहिता जगदेव

   उग्र प्रभा समाचार,छिंदवाड़ा

27 मार्च विश्व रंगमंच विशेष

छिंदवाड़ा रंगमंच के अनेकों कलाकार फ़िल्म इंडस्ट्री में अपनी कला का जादू बिखेर रहे हैं।

उग्र प्रभा समाचार छिंदवाड़ा : छिंदवाड़ा में रंगकर्म का इतिहास दशकों पुराना है। यहाँ पर मंचित होने वाली रामलीला तो 135 वर्षों से निरंतर प्रतिवर्ष मंचित की जाती है। रंगकर्म के शुरुआती दौर में वरिष्ठ कलाकारों ने कई प्रसिद्ध नाटकों के मंचन किए और छिंदवाड़ा में रंगमंच की नींव रखी। लेकिन छिंदवाड़ा के रंगकर्म का स्वर्ण युग वर्ष 2000 से शुरू हुआ जब इप्टा छिंदवाड़ा के द्वारा रंगकर्म की सतत् कार्यशाला आयोजित की गई। इस कार्यशाला से छिंदवाड़ा के कई युवा और वरिष्ठ कलाकार जुड़े। और इसके बाद से अब तक छिंदवाड़ा का रंगमंच अपने शिखर पर पहुँच गया। वर्तमान में छिंदवाड़ा में नाट्यगंगा रंगमंडल, किरदार संस्थान, ओम मंच पर अस्तित्व, अनंत मार्कण्डेय रंगोत्थान समिति सहित विभिन्न रंगसंस्थाएं सक्रिय रंगकर्म कर रही हैं। इन संस्थाओं के कलाकार प्रतिष्ठित नाट्य विद्यालयों से प्रशिक्षित हैं। हमारे शहर के रंगकर्म को पूरे देश में अलग पहचान मिली है। यहां तक की छिंदवाड़ा की संस्था को रंगमंडल का दर्जा भी केंद्र सरकार के द्वारा प्रदान किया गया। विशेषकर छिंदवाड़ा के साझा रंगकर्म की प्रशंसा देश के नामचीन कलाकारों के द्वारा की जाती है। अब तो छिंदवाड़ा रंगमंच के अनेकों कलाकार फ़िल्म इंडस्ट्री में अपनी कला का जादू बिखेर रहे हैं।

लेकिन इन उपलब्धियों के बाद भी छिंदवाड़ा का रंगकर्मी एक सर्वसुविधायुक्त रंगभवन के लिए तरस रहा है। जिसकी माँग पिछले चालीस वर्षों से कलाकारों के द्वारा की जा रही है। विगत वर्ष इस माँग को बल देने के लिए छिंदवाड़ा ऑडिटोरियम निर्माण समिति का गठन भी कलाकारों ने किया। जिसमें सभी विधा के कलाकार एक साथ आकर छिंदवाड़ा में एक सर्वसुविधायुक्त रंगभवन बनाने की माँग कर रहे हैं। पर अभी तक इस दिशा में प्रशासन के द्वारा कोई भी ठोस पहल नहीं की गई। छिंदवाड़ा के सभी अधिकारियों और जनप्रतिनिधियों से समिति सदस्यों ने निवेदन किया पर अभी तक कोई सफलता नहीं मिली। ये कितने आश्चर्य का विषय है कि छिंदवाड़ा में वर्तमान में एक भी ऐसा भवन नहीं है जो रंगकर्म के लिए उपयुक्त हो। कुछ वर्षों पहले तक हिंदी प्रचारिणी भवन और टाउन हॉल में मंचन किए जाते थे पर अब जर्जर हो जाने के कारण ये दोनों भी अनुपयोगी हो गए हैं। वर्तमान में रंगकर्मी विभिन्न मंगल भवनों या स्कूल-कॉलेज के हॉल को अथक परिश्रम से रंगमंच के रूप में परिवर्तित करते हैं और फिर वहाँ पर मंचन करते हैं। कुल मिलाकर एक ऑडिटोरियम के अभाव में भी छिंदवाड़ा के लगनशील और जुझारू रंगकर्मी अपनी जिद से छिंदवाड़ा में रंगकर्म को जीवित बनाए हुए हैं। 

रंगकर्मियों के विचार-

बड़े शहरों में रंगकर्मियों को सिर्फ अपने नाटक को तैयार करने में मेहनत करना पड़ता है लेकिन हमारे शहर में वास्तविक मेहनत का काम तो नाटक तैयार होने के बाद शुरू होता है कि नाटक का मंचन कहां और कैसे करें। छिंदवाड़ा में कोई भी रंगभवन नहीं हैं जो हॉल उपलब्ध हैं वो सुविधविहीन होने के बाद भी इतने महॅंगे हैं जो रंगकर्मियोपहुँच के बाहर हैं। पर फिर भी छिंदवाड़ा के रंगकर्म ने पूरे देश में अपनी पहचान बनाई है। इसके पीछे छिंदवाड़ा के नए एवं पुराने रंगकर्मियों का परिश्रम एवं जिद मुख्य कारण है।

-सचिन वर्मा, रंगकर्मी एवं अध्यक्ष छिंदवाड़ा ऑडिटोरियम निर्माण समिति

वर्तमान समय में किसी भी आदर्श शहर के लिए ऑडिटोरियम एक आधारभूत आवश्यकता होती है। विश्व रंगमंच दिवस के अवसर पर छिंदवाड़ा में भव्य एवं आधुनिक तकनीक से युक्त ऑडिटोरियम की आकांक्षा प्रत्येक कला साधक की है। ऐसे में हमारी अपेक्षा है कि जनप्रतिधि एवं कार्यपालिका ऑडिटोरियम निर्माण में आ रही अड़चनों को दूर कर इसके निर्माण की आधारशिल रखें।

-ऋषभ स्थापक, रंगकर्मी एवं सचिव छिंदवाड़ा ऑडिटोरियम निर्माण समिति

छिंदवाड़ा रंगमंच के मामले में शानदार और गौरवशाली इतिहास समेटे हुए है। 50 के दशक से शुरु रंगमंच का कारवा लगातार जारी है, नई पीढ़ी इसे नई ऊँचाइयों पर पहुचा रही हैं। इन सबके बावजूद छिंदवाड़ा में ऑडीटोरियम न होना समझ से परे है। अगर प्रशासन रंगकर्मियों को प्रोत्साहित करे और ऑडोटोरियम की सुविधा हो जाए तो फिर रंगकर्म के क्षेत्र में आने वाला कल और भी शानदार होगा।

-डॉ. पवन नेमा, रंगकर्मी

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ