मोहिता जगदेव
उग्र प्रभा समाचार,छिंदवाड़ा
मनुष्य मूलतः प्राकृतिक परिवेश में पनपने वाला प्राणी है": प्रो. अमर सिंह
"भौतिक युगीन कृत्रिम माहौल दिव्य शक्ति से वंचित न करे": प्रो. अमर सिंह
विनाश के कगार तक पहुँचने के पहले ही संभलना समझदारी है : प्रो.गौरी वेदी
"जीवन संतुलन बिना पूर्णता का एहसास असंभव है ": प्रो. अमर सिंह
समस्त साधन सहृदयता की चेतना को जगाने के लिए बने हैं, न कि मनुष्यता को कमजोर करने के लिए: प्रो . प्रशांत महाजन
उग्र प्रभा समाचार,उमरानाला छिंदवाड़ा : शासकीय महाविद्यालय उमरानाला में पर्यावरण शिक्षण के अंतर्गत सतत जीवन स्वस्थ जीवन पर आयोजित कार्यशाला में मुख्य अतिथि वक्ता प्राचार्य शासकीय महाविद्यालय चांद प्रो. अमर सिंह ने छात्रों को संबोधित करते हुए कहा कि पृथ्वी के संसाधनों को कम उपयोग कर पर्यावरण को नुकसान से बचाना ही सतत जीवन शैली है। संतुलित आहार, नियमित व्यायाम, पर्याप्त नींद, तनाव प्रबंधन, पर्यावरण के अनुकूल परिवहन, स्थानीय एवं मौसमी भोजन इसके प्रमुख घटक हैं। पर्यावरणीय शुद्धता का सीधा संबंध सतत जीवन और स्वस्थ जीवन से जुड़ा है। मनुष्य मूलतः प्राकृतिक परिवेश में पनपने वाला प्राणी है, भौतिक युग की पराकाष्ठा के आज के कृत्रिम माहौल ने उसे पहले ही उसको दिव्य क्षमताओं से वंचित कर दिया है। मानव को अपनी नस्ल को पूर्णता प्रदान करने हेतु शारीरिक, मानसिक, आत्मिक और भावनात्मक विकास के बीच संतुलन स्थापित करना होगा। प्राचार्य प्रो. ए. एन. के. राव ने कहा कि असंतुलन अस्वस्थता की जननी है और सतत जीवन में सबसे बड़ी बाधा है। मनुष्य की भौतिकता की अंधी दौड़ उसे प्रकृति से मिलने वाली समस्त आध्यात्मिक संजीवनी से वंचित कर देती है। मनुष्य पैदा ही हुआ है दिव्य अनुभूतियों से सृजन की उद्दाम अभिव्यक्ति की स्थापना के लिए।
प्रो . जी. एस. आर. नायडू ने कहा कि मनुष्य को उसकी विलासिता ने उसके आंतरिक संस्कारों के परिमार्जन पर विराम लगा दिया है। प्रो. सरिता कुशवाह ने कहा कि हर मनुष्य के अंदर निहित अनगिनत संभावनाओं के उदय के लिए जिस आत्मिक प्रकाश के प्रज्ज्वलित होने की दरकार थी, उसके पथ को कृत्रिमता की अनावश्यक आंधी ने धूमिल कर दिया है। प्रो. प्रशांत महाजन ने कहा कि समस्त साधन सहृदयता की चेतना को जगाने के लिए बने हैं, न कि मनुष्यता को कमजोर करने के लिए। प्रो. उम्मेद विश्वकर्मा ने कहा कि हमें उस हर हरकत को, जो पर्यावरण को नुकसान पहुंचाती है, निर्मूल करना होगा अन्यथा सृष्टि के सतत निर्माण में मनुष्यता निर्माण की सार्वभौमिक यथार्थपरकता निर्बल हो जाएगी। प्रो. गौरी वेदी ने कहा कि उससे पहले कि हम विनाश के उस कगार तक पहुंच जाएं कि वहां से लौटना मुश्किल हो जाए, संभलने में ही समझदारी होगी।