मोहिता जगदेव
उग्र प्रभा समाचार,छिंदवाड़ा
अंतर्राष्ट्रीय पुरुष दिवस पर बैतूल में खुलकर हुई चर्चा, विशेषज्ञों ने कहा- दबाव नहीं, संवाद जरूरी
*विधायक डॉ. योगेश पाण्डग्रे, अधिवक्ताओं व चिकित्सकों ने व्यक्त किए प्रेरक विचार*
उग्र प्रभा समाचार,बैतूल : अंतर्राष्ट्रीय पुरुष दिवस पर बैतूल में एसआईएफ बैतूल संस्था द्वारा आयोजित विशेष जागरूकता कार्यक्रम में पुरुष मानसिक स्वास्थ्य, न्यायिक संतुलन और सामाजिक संवेदना पर खुलकर बात हुई। विधायक डॉ. योगेश पंडाग्रे से लेकर वरिष्ठ अधिवक्ताओं और चिकित्सकों ने पुरुषों के भावनात्मक संघर्षों को समझने की जरूरत बताई। मंच से कानून के दुरुपयोग, तनाव, जिम्मेदारी और संवाद पर प्रेरक विचार व्यक्त किए गए। कार्यक्रम में पीड़ित पुरुषों ने अपने वास्तविक संघर्ष साझा कर समाज को संवेदनशील होने का संदेश दिया।
कार्यक्रम का संचालन डॉ. संदीप गोहे ने किया। मुख्य अतिथि विधायक डॉ. योगेश पंडाग्रे ने पुरुष मानसिक स्वास्थ्य पर चल रही मुहिम की सराहना करते हुए कहा कि समाज में संतुलन और सकारात्मक दिशा बनाए रखने के लिए पुरुषों की भावनात्मक स्थिति को समझना बेहद जरूरी है। उन्होंने इस पहल को समय की आवश्यकता बताते हुए अभियान को निरंतर सहयोग देने की घोषणा की।
- कानूनों में सुप्रीम कोर्ट ने किए महत्वपूर्ण बदलाव
विशिष्ट अतिथि अधिवक्ता अंशुल गर्ग ने न्यायिक सुधारों पर बोलते हुए कहा कि 498 ए सहित कई कानूनों में सुप्रीम कोर्ट ने महत्वपूर्ण बदलाव किए हैं और न्याय पुरुष या महिला किसी एक पक्ष का नहीं, बल्कि तथ्यों और प्रमाणों पर आधारित होना चाहिए। वरिष्ठ अधिवक्ता मारोतीराव बारस्कर ने कहा कि कानून का उद्देश्य सुरक्षा है, गलत उपयोग नहीं, और समाज में समानता तभी संभव है जब अधिकारों का प्रयोग ईमानदारी और जिम्मेदारी से किया जाए।
कानून तभी सार्थक जब उसका प्रयोग संयमित व निष्पक्ष रूप से किया जाए,अधिवक्ता राजेंद्र उपाध्याय ने कहा कि अधिकांश विवाद ईगो और पावर के गलत उपयोग से बढ़ते हैं और कानून तभी सार्थक है जब उसका प्रयोग संयमित व निष्पक्ष रूप से किया जाए।
डॉ. संदीप बर्डे ने कहा कि पुरुष अक्सर अपनी भावनाओं को दबा लेते हैं जिससे मानसिक दबाव बढ़ता है, जबकि अपनी बात साझा करना कमजोरी नहीं बल्कि समझदारी है। कार्यक्रम का मंच संचालन पत्रकार गौरी बालापुरे ने किया। उन्होंने कहा कि पुरुषों को परामर्श, सहयोग और ऐसा सुरक्षित वातावरण मिलना चाहिए जहां वे अपनी बात खुलकर रख सकें, क्योंकि किसी भी अधिकार का गलत उपयोग समाज और परिवार दोनों को कमजोर करता है।
- पुरुष भी भावनात्मक दबावों से गुजरते हैं
वरिष्ठ अधिवक्ता और अध्यक्ष, अधिवक्ता संघ, आमला केशव राव चौकीकर ने कहा कि पुरुष भी भावनात्मक दबावों से गुजरते हैं पर समाज के डर से बोल नहीं पाते, जबकि बोलना और मदद मांगना परिपक्वता का प्रतीक है। डॉ. अरुण जयसिंहपूरे ने कहा कि जिस तरह महिलाए स्वास्थ्य को लेकर जागरूक हो रही हैं उसी तरह पुरुषों को भी अपनी शारीरिक और मानसिक सेहत के प्रति जागरूक होना चाहिए, क्योंकि तनाव को अनदेखा करना भविष्य में गंभीर जोखिम बन सकता है। उन्होंने इस अभियान को समाज को स्वस्थ दिशा देने वाली महत्वपूर्ण पहल बताया।
कार्यक्रम में शामिल पीड़ित पुरुषों ने अपने व्यक्तिगत संघर्षों और मानसिक स्वास्थ्य से जुड़े अनुभव साझा किए। कार्यक्रम के अंत में डॉ. संदीप गोहे ने मुख्य अतिथि, विशिष्ट अतिथियों और सभी प्रतिभागियों का आभार व्यक्त करते हुए कहा कि पुरुष मानसिक स्वास्थ्य, न्यायिक संतुलन और सामाजिक संवेदना को नई दिशा देने में यह कार्यक्रम एक महत्वपूर्ण कदम साबित हुआ है और सभी की उपस्थिति ने इसे सार्थक बनाया।

