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छिंदवाड़ा जिला चिकित्सालय में इलाज से ज्यादा औपचारिकता — डॉक्टरों का ध्यान निजी क्लीनिकों और कमीशन पर!

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 छिंदवाड़ा जिला चिकित्सालय में इलाज से ज्यादा औपचारिकता — डॉक्टरों का ध्यान निजी क्लीनिकों और कमीशन पर!

गरीब-मजदूर वर्ग को सरकारी अस्पताल से नहीं, मौत से मिलती है मुलाकात — जिम्मेदार मौन!

✍️ उग्र प्रभा समाचार – विशेष रिपोर्ट नीलेश डेहरिया संपादक 

छिंदवाड़ा।मध्यप्रदेश के सबसे चर्चित और विकसित जिलों में शुमार छिंदवाड़ा का जिला चिकित्सालय आज अपनी मूल जिम्मेदारी से भटक गया है। यहाँ इलाज से अधिक औपचारिकता निभाई जा रही है। सरकारी डॉक्टर अस्पताल तो आते हैं, पर कर्तव्यनिष्ठा नहीं निभाते।मरीजों और परिजनों का कहना है कि अधिकांश सरकारी चिकित्सक केवल ड्यूटी टाइम पूरा करने की औपचारिकता निभाते हैं, जबकि उनका पूरा ध्यान निजी क्लीनिकों, डायग्नोस्टिक सेंटरों और दवा कंपनियों से मिलने वाले कमीशन पर रहता है। इससे सरकारी अस्पताल में इलाज की गुणवत्ता लगातार गिरती जा रही है।

गरीब और मध्यम वर्ग की विवशता:

अमीर और सम्पन्न लोग सीधे निजी अस्पतालों में जांच और इलाज करवा लेते हैं, लेकिन गरीब, मजदूर और मध्यमवर्गीय परिवार अब भी सरकारी अस्पताल की ओर उम्मीद भरी नजरों से देखते हैं। परंतु अक्सर उन्हें इलाज के बजाय लापरवाही का सामना करना पड़ता है। कई बार तो मरीज अस्पताल में इलाज नहीं बल्कि मौत पाता है।ऐसे मामलों में जब कोई गरीब व्यक्ति इलाज के अभाव में दम तोड़ देता है, तो शव को सामने रखकर धरना, प्रदर्शन और विरोध तो होता है,


लेकिन उसके बाद भी नेता, जनप्रतिनिधि और प्रशासन मौन रहते हैं। जनता और युवा वर्ग काफी हद तक शिक्षित और समझदार होते जा रहे हैं जो जनप्रतिनिधियों के सोशल मीडिया अखबार पर छपी खबर को बेहतर ढंग से समझ रहे हैं जनप्रतिनिधियों को सेवा सहयोग नहीं सिर्फ सुर्खियां बटोरना ही पसंद है क्षण भर के औपचारिक निरीक्षण करने पर अखबारों की हेडलाइन में रहना पसंद है लेकिन संसाधन और उत्तम स्वास्थ्य व्यवस्थाओं हर नागरिक को मुक्त इलाज समय पर इलाज जिंदगी के बचाव से कोई लेना-देना नहीं है व्यवस्था तभी सुधर पाएगी जब आमीर भी नेता जन प्रतिनिधि अपने परिजनों का इलाज सरकारी अस्पताल में गरीब मरीजों के पलंग के बाजू में भर्ती होकर इलाज करायेंगे। 
हाल ही में शासकीय चिकित्सक परासिया सिविल अस्पताल में पदस्थ डाँ प्रवीण सोनी एक महीना का शासकीय अवकाश लेकर निजी क्लीनिक में ईलाज कर  रहे जो 24 मासूम बच्चो की जान लेकर जेल की सलाखों में कैद है। 

कमीशन और निजी अस्पतालों की जकड़न:

सूत्र बताते हैं कि जिला चिकित्सालय में पदस्थ कई डॉक्टरों का निजी अस्पतालों और जांच केंद्रों से गहरा तालमेल है। मरीजों को जानबूझकर बाहर के टेस्ट या महंगी दवाएं लिखी जाती हैं, ताकि कमीशन का खेल चलता रहे। यह न सिर्फ चिकित्सा आचार संहिता का उल्लंघन है बल्कि मानवता के साथ अन्याय भी।

सामाजिक संगठनों और गरीबो की मांग:

स्थानीय समाजसेवी संगठनों ने स्वास्थ्य विभाग और जिला प्रशासन से मांग की है कि इस पूरे मामले की जांच कर सरकारी डॉक्टरों की निजी प्रैक्टिस और क्लीनिक संचालन पर रोक लगाई जाए।

👉 यदि सरकार सच में गरीब, मजदूर, किसान और मध्यमवर्गीय परिवारों की हितैषी है, तो उसे तुरंत सभी सरकारी चिकित्सकों की निजी प्रैक्टिस पर प्रतिबंध लगाकर सख्त कार्रवाई करनी चाहिए।अन्यथा सरकारी अस्पतालों का भरोसा टूट जाएगा और जनता का विश्वास हमेशा के लिए खत्म हो जाएगा।


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