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छिंदवाड़ा विश्वविद्यालय में आयुर्वेदिक औषधि विभाग खोलने का संकल्प पारित हुआ"

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        मोहिता जगदेव

  उग्र प्रभा समाचार,छिंदवाड़ा 

छिंदवाड़ा विश्वविद्यालय की तीन दिवसीय राष्ट्रीय कार्यशाला का संकल्पों के साथ समापन 

छिंदवाड़ा में कफ सीरव की भावी दुर्घटना से बचने हेतु आयुर्वेदिक औषधि की अनुशंसा आयुष मंत्रालय को किए जाने का संकल्प पारित "


उग्र प्रभा समाचार, छिंदवाड़ा: राजा शंकर शाह विश्वविद्यालय छिंदवाड़ा द्वारा रसायन, जैव रसायन और भारतीय औषधीय पौधों के आयुर्वेद पर आयोजित त्रिदिवसीय कार्यशाला के समापन समारोह में मुख्य अतिथि उत्तर प्रदेश पीएससी के अध्यक्ष प्रो के. बी. पांडे की उपस्थिति में संकल्प लिया गया कि विश्वविद्यालय स्तर पर आयुर्वेद और भारतीय औषधीय पौधा विभाग की स्थापना, शोधार्थियों के लिए सतत कार्यशालाओं का आयोजन व शोध निष्कर्षों को पुस्तक के रूप में प्रकाशित किया जाएगा। समापन समारोह के अध्यक्ष प्रो. आई. पी. त्रिपाठी ने संकल्प लिया कि विश्वविद्यालय द्वारा औषधीय पौधों के संरक्षण, अनुसंधान व प्रसार को बढ़ावा दिया जाएगा। छिंदवाड़ा में विषैले कफ सीरव की दुर्भाग्यपूर्ण घटना के परिप्रेक्ष्य में एलोपैथी की जगह वनौषधि आयुर्वेदिक दवाओं  को गठित समिति की अनुशंसा अनुसार आयुष मंत्रालय को की जाएगी

विशिष्ट अतिथि सागर के प्रो. ए.पी. मिश्रा ने भारत के आयुर्वेद 2500 वर्ष पुराना होने, जोधपुर से प्रो डी. डी. ओझा ने पूरे विश्व में 8 हजार प्रकार की वनस्पतियां होने एवं डीआरडीओ के प्रो. राजेंद्र सिंह ने अभी तक सिर्फ 3 हजार पौधों की खोज होने की बात कही। रीवा से प्रो,. आर. ए.पटेल आयुर्वेद में अभी तक 1250 प्रकार के पौधों पर ही प्रयोग होने की, लखनऊ से प्रो. अविनाश मिश्रा ने सिकुड़ता वन क्षेत्र  पर चिंता और प्रो. महेंद्र मिश्रा ने बढ़ती हुई वन रिसोर्स की मांग पर और रीवा के प्रो. अतुल तिवारी ने आयुर्वेद के वैज्ञानिकों को शोध को बरकरार रखने की जरूरत पर जोर दिया। प्रो. नीतू पटेल ने  औषधीय पौधों के दस्तावेजीकरण की गहन आवश्यकता एवं प्रो. आर. एन. पटेल ने पौधों के रासायनिक विशेषताओं को पहचानने की आवश्यकता पर जोर दिया। तकनीकी सत्र को प्रो. संजय सक्सेना भोपाल, लखनऊ से प्रो. संतोष सिंह,  प्रो. विवेकधर द्विवेदी नोएडा एवं प्रो. सुरेश वोहू विजयवाड़ा ने भी संबोधित किया। समापन समारोह का संचालन प्रो. धनाराम, निष्कर्ष वाचन प्रो. जे के वाहने एवं आभार व्यक्त प्रो. युवराज पाटिल द्वारा किया गया।

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