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अवधेश तिवारी के काव्य संग्रह 'तिमिर के दीप ' पर हैदर 'फ़ज़ा' की अभिव्यक्ति

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         मोहिता जगदेव 

   उग्र प्रभा समाचार,छिंदवाड़ा

       तिमिर के दीप

  कवि - अवधेश तिवारी 

 समीक्षक - हैदर 'फजा ' मंड़ला म.प्र . 

     अवधेश तिवारी  के काव्य संग्रह 'तिमिर के दीप ' पर  हैदर 'फ़ज़ा' मण्डला म.प्र.की अभिव्यक्ति

 "तिमिर के दीप "अवधेश तिवारी के विचार और अनुभूति की अतिसुन्दर काव्य -अभिव्यक्ति है: हैदर' फजा'


      सन् 2009 में वैभव प्रकाशन रायपुर ((छत्तीसगढ़) से प्रकाशित काव्य संग्रह _ 'तिमिर के दीप ' आकाशवाणी, छिंदवाड़ा म.प्र. के पूर्व वरिष्ठ उद्‌घोषक अवधेश तिवारी के विचार और अनुभूति की अतिसुन्दर काव्य -अभिव्यक्ति है। विविध रंगों में रंगी हुई 65 रचनाएँ  'तिमिर के दीप' काव्य संग्रह में समाहित हैं ।

      इस काव्य-संग्रह में सहृदय कवि की रचनाएँ 'कवि- धर्म ' का पालन करती सहज ही दृष्टिगोचर होती हैं।इस संग्रह की उच्चस्तरीय रचनाएँ हिन्दी विशिष्ट पाठ्यक्रम में समाहित रचनाओं की स्मृति ताज़ा कर जाती हैं। कवि की कलम कभी महादेवी वर्मा की सखा, कभी जयशंकर प्रसाद ,कभी सुमित्रानंदन पंत, सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला तो कभी अज्ञेय के मित्र या करीबी होने का एहसास दिलाती हैं।

    प्रकृति और श्रृंगार पर थिरकती हुई अवधेश तिवारी की लेखनी मानवीय संवेदनाओं से भी अछूती  नहीं है। 'आदमी' कविता में  एक ओर जहाँ मानव-पीड़ा का मार्मिक चित्रण है तो वहीं दूसरी ओर रचना 'अहिंसा परमोधर्मः'मानव को श्रेष्ठ बनाने का आव्हान है।

जीवन के विरोधाभास काअतिसुंदर चित्रण और जीवन जीने का संदेश है_'सुख और दुख ' रचना में ।

   राष्ट्रभाषा -प्रेम से ओतप्रोत कवि सभी भाषाओं के प्रति अपने निर्मल हृदय का परिचय देते हुए कहता है -             

 "सबको अपने गले लगाएँ -

तमिल, तेलुगू और मराठी,

राजस्थानी या गुजराती

सबकी निर्मले धारा को हम

 हिन्दी से जोड़ें - जुड़वाएँ गंगा-ब्रह्मपुत्र - कावेरी

 सबके जल को चलो मिलाऍ-

एक नया इतिहास बनाऍ _

अपनी भाषा के प्रकाश को 

आओ, घर-घर तक पहुँचाएँ -चलो-दीप से दीप जलाऍ "

    कवि 'बुझे हुए कुछ दीप जलाओ' कविता में सभी जाति-धर्म में समाहित 'परम ज्योति ' की बात करता है तो 'ईश्वर '  रचना  'नर में नारायण ' का बोध कराती हुई अदृश्य परमात्मा को प्रदर्शित करती है।

'माटी की नीव ' कविता परवरदिगार से अनेक प्रश्नों के जवाब माँगती है जो कवि के 'नश्वर संसार चिन्तन" तथा 'ईश -चिन्तन 'के एकान्त क्षणों को स्वयं से बाँटने की सुन्दर दृश्य प्रस्तुति है ।जीवन सफ़र में बहुत कुछ करने की चाह की अभिव्यक्ति है रचना _ 

' मुझको अभी बहुत चलना है ' ।

        इस साहित्यिक सफ़र में मनचाही ऊँचाइयों को छूने की उनकी चाह फलीभूत हो इसी हार्दिक शुभकामना के साथ ...........

             हैदर ' फ़ज़ा ' मण्डला म.प्र

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