Type Here to Get Search Results !

श्री रामलाल सराठे "रश्मि" के काव्य संग्रह "आह्वान" की समीक्षा -डाॅ विजय कलमधार

0

         मोहिता जगदेव

   उग्र प्रभा समाचार,छिंदवाड़ा 

"आह्वान : शब्दों से संवेदना तक की यात्रा"

श्री रामलाल सराठे "रश्मि" के काव्य संग्रह "आह्वान" की समीक्षा

समीक्षक -डॉ. विजय कलमधार


1. भूमिका :

"आह्वान"  वरिष्ठ कवि श्री रामलाल सराठे जी का बोधि प्रकाशन, जयपुर से सद्य प्रकाशित काव्य संग्रह है, जिसमें कुल 82 कविताएं शामिल हैं। इन कविताओं में कवि की दृष्टि केवल शब्दों तक सीमित नहीं, बल्कि समाज, राष्ट्र और मानवता के हर पक्ष को समाहित करती है। यह संकलन समकालीन हिंदी कविता की परंपरा को लोकभावना, राष्ट्रीय चेतना और मानवीय सरोकारों से जोड़ता है। काव्य संग्रह का शीर्षक ही इस बात को प्रमाणित करता हैं कि कवि ने समाज के विभिन्न पक्षों, मानवीय भावनाओं,  सांस्कृतिक परंपराओं और प्रकृति के विविध रूपों को अपने काव्य में समाहित किया है। 

काव्य संग्रह की कई कविताएं जैसे – "मजदूर की स्थिति",  "हम वनवासी", "कुष्ठ निवारण", "मानवता", "बूंदे हैं- बेटियां हमारी", "मजदूर" आदि इस बात की पुष्टि करती हैं कि कवि ने समाज के उन तबकों के लिए काव्य रचना की है जो अक्सर साहित्यिक विमर्शों में उपेक्षित रह जाते हैं। कवि "रश्मि" लिखते हैं -

"मैंने उगाई है फसल, भरने को जग के पेट को।

पर कौन समझेगा खींची, मस्तक पे विधि की रेख को।

 खुद की क्षुधा मैं शांत करने को स्वयं मजबूर हूं।

 क्योंकि मैं मजदूर हूं।"

यह कविता श्रमिक वर्ग की व्यथा और शोषण को उजागर करती हैं। "कुष्ठ निवारण" कविता स्वास्थ्य एवं सामाजिक स्वीकार्यता जैसे विषयों पर ध्यान आकर्षित करती है, जबकि "बूंदे हैं- बेटियां हमारी" शीर्षक नारी संवेदना और स्त्री सम्मान का प्रतीक है। बूंदों को बेटियों का प्रतीक बनाकर कवि लिखते हैं-

"बूंदें

 छोटी कमजोर बूंदें 

 खोती 

अस्तित्व अपना 

पड़ते ही तप्त धरा पर,

 रौंदी जाती

 पांव तले पशुओं के!"

"वीरों को नमन", "जिनकी आन तिरंगा है", "चलो अयोध्या धाम को", "कश्मीर", "देश के कगार पर जवान" जैसी कविताएं राष्ट्रीय अस्मिता, देशभक्ति और सांस्कृतिक गौरव को काव्यात्मक स्वर देती हैं।

"जिनकी आन तिरंगा है" जैसी कविता  स्वतंत्रता सेनानियों और देश के लिए बलिदान देने वाले वीरों की श्रद्धांजलि है। इसमें वे लिखते हैं -

"जिनकी आन तिरंगा है, जिनकी शान तिरंगा है।

नमन है उन वीरों को, जिनकी जान तिरंगा है।।"


"काश्मीर" कविता देश की सौंदर्य भूमि तथा ज्वलंत और संवेदनशील मुद्दों को रेखांकित करती है, तो "चलो अयोध्या धाम को" कविता सांस्कृतिक पुनर्जागरण और धार्मिक आस्था को चित्रित करती है।

"चलो- चलो रे अयोध्या धाम को,

मनमंदिर के सिंहासन पर, आज बिठाकर राम को।"

"फागगीत", "होली की हुड़दंग", "मेहंदी के हाथ", "रंग न हाथ अबीरा" जैसी कविताएं भारतीय लोकपरंपरा, उत्सवों और लोकजीवन की झलक प्रस्तुत करती हैं। वहीं "मेहंदी के हाथ" विवाह और सौंदर्य की पारंपरिक अभिव्यक्ति है। "कारे मेघा पानी दे", "वर्षा के गीत", "बसंत", "ग्राम्या", "पर्यावरण", "कैक्टस", "उष्णता" जैसी कविताएं प्रकृति के विविध रूपों का रचनात्मक चित्रण प्रस्तुत करती हैं।

"खेत सूखते फटती धरती , क्रूर किरण हरियाली हरती।

छाया ढूंढे पथिक कोकिले, कुहू-कुहू कर आहें भरती।।

तपन शांत कर खगवृंदो की, करने को मनमानी दे।

(कारे मेघा पानी दे)

"पर्यावरण" जैसी कविता पर्यावरणीय संकट और जागरूकता का संदेश देती होगी। "कैक्टस" और "उष्णता" जैसे कविताएं प्रकृति के  कठोर पक्षों की ओर संकेत करती हैं, जबकि "बसंत" नवचेतना और सौंदर्य का प्रतीक है।

"मैंने 

रोपा था उसे 

देकर खाद - पानी

अपने हाथों से,

कि 

देगा फूल, बिखरेगा सुगंध

सर्वत्र!

पर, वह कैक्टस हो गया!

सोचा

लगा रहने दो उसे

रक्षा ही करेगा, आवारा पशुओं से!" (कैक्टस)

"सीधापन", "आस्था", "भ्रष्टाचार", "प्रेम पुजारी", "अक्षर के दीपक", "कविता से..", "दीपक जलाए" जैसी कविताएं व्यक्ति के अंतर्मन, मूल्यों और विचारधाराओं का दर्पण हैं।

"चलो हम कहीं कोई दीपक जलाएं 

फैला हुआ थोड़ा तम तो हटाएं 

पोंछकर आंसू पीड़ा से रोते हुए के

अधरों पे थोड़ी सी मुस्कान लाएं।" (दीपक जलाए)

"अक्षर के दीपक" में इसी भावना को व्यक्त किया है। यह दीपक आशा और जागृति का संदेश देता है-

"भटकती है राहे, जहां मंजिलों की,

 सिमटती हो आकांक्षाएं, oजिंदगी की।

 चलो हम वहां पर जगा दे उम्मीदें,

 वहां चाहिए सबको अक्षरों के दीपक।।"

"सीधापन" में  सज्जनता और उसकी विडंबनाएं  चित्रित है, तो "भ्रष्टाचार" जैसी शीर्षक कविता में सामाजिक मूल्य क्षरण और नैतिक संकट की ओर इशारा हैं। "प्रेम पुजारी" आत्मा के भीतर प्रेम और भक्ति का संदेश देती है।

"साहित्यकार के नाम संदेश" जैसी कविता, साहित्य की भूमिका और साहित्यकारों के दायित्व की ओर एक सीधा संवाद प्रतीत होती है। यह कविता साहित्य को समाज के पथप्रदर्शक रूप में चित्रित करती है।

"रश्मि" जी सरल, लोकप्रचलित, तथा संप्रेषणीय भाषा का प्रयोग करते हैं। उनका काव्य लोकजीवन से जुड़ा हुआ, सामाजिक सरोकारों से प्रेरित और जनमानस की संवेदनाओं को स्वर देता प्रतीत होता है। इसमें कहीं व्यंग्यात्मक लहजा, कहीं मार्मिक चित्रण तो कहीं ओजपूर्ण भावनाएं देखने को मिलती है।


2. भाव और कला पक्ष:

काव्य का भाव-पक्ष वह आधार है जो पाठकों के भीतर संवेदना जगाता है। "आह्वान" काव्य संग्रह में यह पक्ष अत्यंत सशक्त और व्यापक है। इन कविताओं में समाज के हाशिए पर खड़े वर्गों के प्रति कवि की सहानुभूति और जिम्मेदारी प्रदर्शित होती हैं। ये कविताएं केवल वर्णन नहीं करतीं, आह्वान करती हैं बदलाव का, जागरण का। साथ ही राष्ट्रप्रेम, सांस्कृतिक चेतना और समरसता को भी उजागर करती हैं। कवि केवल अतीत को नहीं पुकारते, वर्तमान में भी राष्ट्र के पुनर्निर्माण की बात करते हैं।  कवि स्त्री की सामाजिक, सांस्कृतिक स्थिति को रेखांकित करते हैं। उनके लिए नारी केवल संवेदना का विषय नहीं, संविधान और संवेदना दोनों का केंद्र है। इन पंक्तियों पर दृष्टिपात करें -

"नारी सूर है, लय है, गीत है, 

ममत्व है, स्नेह है, प्रीत है,

गले का हार है, मन का मीत है, 

हृदय रूपी झरने का झरता संगीत है।"


और अंत में वो कहते हैं -

 "तू क्या है, यह लेखनी कह नहीं सकती,

तेरी अविरल धारा समय के पाषाण से रुक नहीं सकती,

तू धरा है, गगन है, गंभीर मंथन है,

अभिनंदन है नारी, तुझे नमन है, वंदन है।"

ये कविताएं मानवीय द्वंद्व, नैतिक मूल्यों और आध्यात्मिक जिजीविषा को उजागर करती हैं। कवि का आत्मसंघर्ष, समाज के आंतरिक संकटों से टकराव बनकर सामने आता है। "हम वनवासी" कविता में कवि लिखते हैं -

"सहज स्वभाव, श्याम तन अपनी 

दुनिया अलग निराली है।

अपना भोजन कोदो कुटकी,

और पेज की प्याली है।।

सर पर पगड़ी, हाथ मे लाठी,

 तन अधनंगा परिधान।

...मेहनतकश हम जड़ी- बूटियां 

खाकर के होते बलवान।।

कला-पक्ष कविता की भाषा, शैली, छंद, बिंब, प्रतीक और कथ्य के विन्यास से संबंधित होता है। "रश्मि" जी की भाषा सरल, सहज और जनभाषा के करीब है। वे क्लिष्टता से बचते हैं, जिससे उनकी कविता आम पाठक को भी छू जाती है। "दीपक", "मेघ", "पानी", "बूंदें", "कैक्टस", "तिरंगा" जैसे प्रतीकों से कवि ने सामाजिक और भावनात्मक अर्थवत्ता गढ़ी है। विशेषतः "दीपक" का उपयोग आशा, ज्ञान और जागरण के रूप में बहुआयामी है।

इन कविताओं में लघुता, भाव-सघनता और लयात्मकता प्रमुख हैं। कविताएं संक्षिप्त होते हुए भी गहन विचार देती हैं। फागगीत, होली की हुड़दंग जैसी कविताएं लोकशैली का संकेत देती हैं। संग्रह की विशेषता इसकी विषय-विविधता है — एक ही संकलन में समाज, राष्ट्र, प्रकृति, स्त्री, वनवासी, मजदूर,  पर्यावरण, अध्यात्म और मानवीय संवेदना जैसे तमाम विषय एकीकृत हैं।


3. निष्कर्ष:

"आव्हान" केवल एक कविता-संग्रह नहीं बल्कि एक वैचारिक घोषणापत्र है – जिसमें समाज, राष्ट्र, संस्कृति, पर्यावरण, मानवीय मूल्यों और साहित्यिक चेतना का सामूहिक आव्हान किया गया है। कवि का दृष्टिकोण व्यापक है – वह लोक की पीड़ा से लेकर राष्ट्र के प्रश्नों तक सबको अपनी लेखनी से जोड़ता है। यह संग्रह निश्चित ही पाठकों को चिंतन, संवेदना और कर्तव्यबोध के लिए प्रेरित करता है। "आह्वान" केवल एक कविता-संग्रह नहीं, यह समकालीन जीवन की विविध परतों का काव्यात्मक चित्रण है। श्री रामलाल सराठे  "रश्मि" जी की रचनाएं पाठकों को न केवल विचार देती हैं, बल्कि संवेदना, चेतना और क्रिया के लिए प्रेरित करती हैं।

इन कविताओं  में न कोई बनावटीपन है, न अतिशयोक्ति। यह संग्रह पाठकों को समाज और आत्मा — दोनों से जोड़ता है। "आह्वान" वास्तव में एक जागरण का आह्वान है — शब्दों के दीपक से, भावों के रंगों से, और चेतना के स्वर से।

डॉ. विजय कलमधार 

हिंदी विभाग, राजमाता सिंधिया शासकीय स्नातकोत्तर कन्या महाविद्यालय, छिंदवाड़ा (मध्य प्रदेश)

...............….............................

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ