मोहिता जगदेव
उग्र प्रभा समाचार,छिंदवाड़ा
"सितारों को कोसने से नहीं, स्वयं को मांजने से नसीब खिलता है": प्रो. अमर सिंह
"मानव महत्वाकांक्षा व प्रकृति की मंशा के बीच द्वंद्व ही त्रासदी है ": प्रो. अमर सिंह
इस दुनियां में न तो कुछ अच्छा है, और न बुरा, जैसा सोचो, वैसा ही है : प्रो श्रीपाद आरोनकर
उग्र प्रभा समाचार, छिंदवाड़ा: शासकीय राजमाता सिंधिया कन्या महाविद्यालय छिंदवाड़ा के अंग्रेजी विभाग द्वारा सोलहवीं शताब्दी के अंग्रेजी के विश्व प्रसिद्ध नाटककार विलियम शेक्सपीयर की जयंती व पुण्यतिथि को लेकर आयोजित अंग्रेजी भाषा दिवस में मुख्य अतिथि वक्ता बतौर बोलते हुए शासकीय महाविद्यालय चांद के प्राचार्य और अंग्रेजी के विभागाध्यक्ष प्रो. अमर सिंह ने शेक्सपीरियन साहित्य दर्शन से व्यक्तित्व विकास करने पर जोर देते हुए कहा कि दोष सितारों में नहीं होता है, बल्कि स्वयं में होता है।
जीवन एक रंगमंच है, जिस पर सभी को अपनी भूमिकाएं अदा करनी पड़ती हैं। प्रकृति की मंशा व मानव महत्वाकांक्षा के बीच असंतुलन के अंतर्द्वंद्व को त्रासदी कहा जाता है। विलियम शेक्सपीयर के जीवन दर्शन को समझकर हम प्रकृति के गूढ़ रहस्यों को जानकर अपनी पीड़ा कुछ कम कर सकते हैं। प्रथमतःकिसी भी घटित सौभाग्य या त्रासदी के लिए हम पूर्णतया योग्य होते हैं,तभी तो यह मिलती है। हमें बुरे काम के बुरे नतीजे तो भुगतने पड़ते ही हैं, कोई भी अच्छा अनुप्रयोग भी बिना दंडित हुए नहीं बचता है। संसार में मानव स्वभाव के सारे व्यापार भद्दे व घटिया हैं, फ़िर उनके दुष्परिणाम भुगतने के हकदार भी तो हमीं ही होंगे। हमेशा गलत लोग व जानलेवा परिस्थिति हमें जीवन के सही सबक सिखाती हैं। दुर्दिन की विभीषिकाएं ही हमें 'हम क्या हैं और क्या हो सकते हैं' के बीच का अंतर साफ़ साफ़ बताती हैं। दोष हमारे सितारों में नहीं होता बल्कि स्वयं हम में ही होता है। संसार तो एक रंगमंच है,और हम सब इसके नाट्य प्रस्तुति के पात्र। अपनी भूमिका अदा कर इससे बाहर हो जाना हमारी नियति है। दिक्कत वहां खड़ी हो जाती हैं जहां पात्रों की कमी के कारण एक व्यक्ति को कई अच्छी बुरी मिश्रित भूमिकाएं निभानी पड़ती हैं।
विभागाध्यक्ष अंग्रेजी प्रो. उमा पंड्या ने कहा कि शेक्सपीयर दर्शन बताता है कि जिंदगी के सबसे अच्छे सबक तूफ़ानों के उथलपुथल के बीच से ही तो निकलते हैं। जीवन एक चलती फिरती परछाई है, हक़ीक़त कुछ भी नहीं। जीवन मूर्ख द्वारा कही गई कहानी की तरह है जिसमें हल्ला गुल्ला बहुत होता है, पर घटनाओं की तार्किक संबद्धता कुछ भी नहीं होती है। प्रो. नयन बाला दास गुप्ता ने कहा कि इस जगत में सब कुछ असंगत है, फ़िर जीवन को तर्क में बांधकर नाहक नाखुशी, मलाल व विकृत माथापच्ची क्यों? यहां कोई नहीं बता सकता कि क्या अच्छा है और क्या बुरा। प्रो. श्रीपाद आरोनकर ने कहा कि शेक्सपीयर दर्शन के अनुसार इस दुनियां में न तो कुछ अच्छा है, और न बुरा, जैसा सोचो, वैसा ही है। हम सब तो इस दुनियां में व्यापारी की तरह काम करते हैं। इस धंधे में कुछ पाप करके उन्नत हो जाते हैं तो कुछ पुण्य करके पतित। प्रो. एकता चौरसिया ने कहा कि हमारे स्वयं पर संदेह ही हमारे सबसे बड़े धोखेबाज होते हैं। ये ही अकसर हमें जीतने से डराकर हरा देते हैं। ऐसे में हम निरीह प्राणियों के पास उम्मीद के अलावा अपना गुबार निकालने के लिए और अच्छा कुछ नहीं होता है।