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विष्णु खरे की जन्म जयंती पर उनके व्यक्तित्व और कृतित्व पर व्याख्यान

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          मोहिता जगदेव

     उग्र प्रभा समाचार,छिंदवाड़ा

"विष्णु खरे सही चीज पर अड़ जाने वाले विद्रोही कवि थे": प्रो. अमर सिंह 

"प्रखर मेधा के दुर्जेय कवि खरे जी किसी का झोला नहीं उठाते थे": प्रो. अमर सिंह 

"विष्णु खरे विश्व के लिए पूर्वी व पश्चिमी दर्शन के सेतु थे ": प्रो. अमर सिंह 

उग्र प्रभा समाचार,चांद छिंदवाड़ा: छिंदवाड़ा के प्रसिद्ध साहित्यकार, कवि, अनुवादक, पत्रकार और समीक्षक विष्णु खरे की जन्म जयंती पर उनके व्यक्तित्व और कृतित्व पर शासकीय महाविद्यालय चांद के व्यक्तित्व विकास विभाग द्वारा आयोजित व्याख्यान में प्रमुख वक्ता प्रो. अमर सिंह ने कहा कि खरे जी छिंदवाड़ा की सौंधी मिट्टी में जन्मे वे कवि थे जिन्होंने अनुवाद के माध्यम से पूर्व व पश्चिम के सांस्कृतिक मूल्यों के बीच समन्वय स्थापित किया। वे सही चीज पर अड़ जाने वाले विद्रोही लेखक थे। उन्होंने अंग्रेजी के प्राध्यापक होते हुए भी अपने हिन्दी भाषा के अद्भुत ज्ञान का एक अनुवादक के रूप में लोहा मनवाया। उत्कृष्ट कोटि के पत्रकार खरे जी को बौद्धिक आलस्य कतई बर्दाश्त नहीं था। तभी तो उन्होंने महज उन्नीस वर्ष की आयु में अंग्रेजी कवि टी. एस. इलियट की दी वेस्टलैंड कविता का हिन्दी अनुवाद करके अपनी अकाल परिपक्व प्रतिभा से साहित्य जगत को विस्मित कर दिया था। जिस कविता का अर्थ निकालने में स्वयं अंग्रेजों के पसीने छूटते थे, उसको खरे जी ने अनुवाद करके समस्त अंग्रेजी और हिंदी साहित्य जगत में अपनी गहन प्रतिभा का परिचय दिया था। शुरू में रामधारी सिंह दिनकर को यह गलतफहमी हुई थी कि यह अनुवाद किसी बड़ी उम्र के अनुवादक ने किया था। प्रो. रजनी कवरेती ने कहा कि बेहतरीन अंदाज के साहित्य समीक्षक खरे जी की गिनती किसी का झोला उठाकर चलने वाले साहित्यकारों में नहीं होती है उनकी फितरत औरों से अलहदा थी। उनका कहना था कि वे अंग्रेजी भाषा के संस्कारों में पले हिन्दी में लिखने वाले साहित्यकार थे।

प्रो. जी. एल. विश्वकर्मा ने कहा कि खरे जी की साहित्य वैचारिकी इतनी सार्वभौमिक थी कि सामान्य समझ के लेखक उनको उत्कृष्ट साहित्यकार न मानकर उनसे शत्रुता कर बैठते थे। प्रो. सकरलाल बट्टी के अनुसार खरे जी हमेशा कहते थे कि गुडलक लेखक की संवेदना को प्रबल होने से रोकता है। असाधारण साहित्यकार किसी को खुश नहीं करते अपितु अव्यवस्था पर गहरी चोट करते हैं। प्रो. सुरेखा तेलकर ने कहा कि खरे जी कहते थे कि साहित्यकार को कायरता से नहीं मरना चाहिए। अच्छे कलाकार का कर्तव्य जीवंत जिंदगी जीना है। प्रो. संतोष उसरेठे ने कहा कि विष्णु खरे ने अपने साहित्य में अनैतिकता के रोग से गुजर रही क्रूर और पाशविक दुनिया को सुधर जाने के लिए जो क्रांतिकारी अभिव्यक्ति दी थी, उसकी मिसाल भविष्य के साहित्यकारों के लिए एक नजीर प्रस्तुत करती है। प्रो. रक्षा उपश्याम ने खरे जी को बिरली आलोचनात्मक क्षमताओं से पूर्ण एक अभिभूत करने वाली शख्सियत करार दिया।

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