मोहिता जगदेव
उग्र प्रभा समाचार, छिंदवाड़ा
"मनुष्य पुनीत विश्वास, चेतना व कर्म से सद्गति पाता है ": प्रो. अमर सिंह
" कृष्ण दर्शन संभावना की सर्वोच्चता से आत्मीय होना है ": प्रो. रजनी कवरेती
"कृष्ण निश्वार्थ मकसद के सर्वोच्च पूजनीय देवत्व हैं": प्रो. जी. एल. विश्वकर्मा
उग्र प्रभा समाचार चांद ,छिंदवाड़ा: शासकीय कालेज चांद में राष्ट्रीय सेवा योजना, व्यक्तित्व विकास और रेड रिबन विभाग द्वारा "श्रीकृष्ण आध्यात्मिक अस्तित्व की सत्ता के सर्वोच्च मकसद" विषय पर आयोजित व्याख्यान में मुख्य वक्ता प्रो. रजनी कवरेती ने कहा कि श्रीकृष्ण सृष्टि की समग्रता के प्रतीक हैं! मानव योनि में पैदा होकर भी निष्काम कर्मयोगी हैं। इच्छा व क्रोध के मद से मुक्त हो आत्मा को जानना उनका दर्शन है। वे व्यक्ति के अपनी निजता में जीने के प्रबल समर्थक हैं। प्रो. अमर सिंह ने कहा कि कृष्ण दर्शन में कहा गया है कि इस जीव जगत में कुछ भी घटित होने के पीछे कारण होते हैं, यहां कुछ भी अकारण नहीं है। वर्तमान में पूर्ण चेतना के साथ जीना हमारी मानसिक भलाई है। कर्म ही सबसे पुनीत कर्तव्य है, उत्पाद से प्रेरित हुए बिना प्रक्रिया का आनंद लेना चाहिए। वासनाएं असफलता का मूल कारण होती हैं। विनम्रता मधुर संबंध बनाने में मदद करती है। मनुष्य अपने विश्वासों से निर्मित होता है।प्रो. जी. एल. विश्वकर्मा ने कहा कि लेकिन हमारे कर्म या तो हमें इस विश्व से बांधते हैं या इससे मुक्त करते हैं। बिना किसी स्वार्थ मकसद के प्रभु कृष्ण सर्वोच्च देवत्व और पूजा की वस्तु हैं। प्रो. आर. के. पहाड़े ने कहा कि कृष्ण बिना किसी अपेक्षा के भावातीत ध्येय के जीवन के मुक्ति पथ पर चलने के दर्शन के प्रतीक हैं। प्रो. सकरलाल बट्टी ने कहा कि अनुभवातीत ज्ञान- आत्मा का आध्यात्मिक ज्ञान, ईश्वर का ज्ञान और दोनों के रिश्ते- व्यक्ति को शुद्ध और बंधनमुक्त करते हैं। आध्यात्मिक अस्तित्व का सर्वोच्च मकसद है। प्रो. सुरेखा तेलकर ने कहा कि कृष्ण दर्शन सर्वोच्च पथ का अनुकरण कर दिव्य गुणों को विकास करना है। प्रो.संतोष उसरेठेने कहा कि अगर कोई व्यक्ति दिव्य गुण रखकर धार्मिक सत्ता का पालन कर संयम से जीवन जीता है तो उसे आध्यात्मिक पूर्णता प्राप्त हो जाती है।

