" संतुष्टि प्रकृति की दौलत, लिप्सा दानवीय प्रकृति है ": प्रो. सिंह
"पर्यावरण संरक्षण भविष्य की सांसों की बीमा पॉलिसी है ": प्रो. सिंह
भविष्य या तो हरा होगा या होगा ही नहीं ": प्रो. सिंह"
पर्यावरण प्रदूषण का खामियाजा पूरी मानव कौम भुगतेगी": प्रो. सिंह
उग्र प्रभा समाचार चांद छिंदवाड़ा: शासकीय महाविद्यालय चांद की राष्ट्रीय सेवा योजना इकाई द्वारा विश्व पर्यावरण दिवस पर आयोजित " पर्यावरण संरक्षण भविष्य की सांस है" विषय पर परिचर्चा में प्राचार्य डॉ. अमर सिंह ने कहा कि पर्यावरण संरक्षण भविष्य की सांसों की बीमा पॉलिसी है। भविष्य या तो हरा होगा, या होगा ही नहीं। हरा होगा तो ही भरा होगा। संतुष्टि प्रकृति की दौलत है और लिप्सा दानवीय प्रवृत्ति। जंगल जमीन के फेफड़े हैं जो हवा को शुद्ध करते हैं। जंगल मानवता की आत्मा है, इसके स्वास्थ्य के बारे में न सोचना जमीं से सुंदरता को सदा के लिए विदा कर देना है। आदमी उड़ सकता तो आसमान को भी उजाड़ देता। भावी इंसानी कौम का अस्तित्व बरकरार रहे, धरा पर दूसरे प्राणियों को जीवित रहने का टिकाऊ माहौल मिले। लापरवाही का खामियाजा पूरी मानवता भुगतेगी। प्रो.रजनी कवरेती ने कहा कि समय रहते सुधरने में ही हमारी समझदारी है। प्राकृतिक संसाधन जरूरतों के उपादान हैं, लूट खसोट की चीज नहीं। प्रकृति के प्रति अनुराग प्राचीन संस्कृति का अंग है।प्रो.जी. एल. विश्वकर्मा ने कहा कि वनस्पति हमारी गौरवशाली धरोहर है, जिसके सरंक्षण के शाश्वत मूल्यों को हमने खूब चोट पहुंचाई है। तभी हम प्राकृतिक प्रकोपों के शिकार हुए हैं। पर्यावरण संरक्षण आंदोलन के सिपाहियों को शहीदों सा सम्मान मिलना चाहिए। प्रो. आर. के. पहाड़े ने कहा कि जब अहसास ही स्वार्थपरक हों तो दिव्यता के दर्शन फिर कहां। प्रो.विनोद कुमार शेंडे ने कहा कि हर पुष्प प्रकृति की गोद में खिली आत्मा है। प्रकृति के प्रति स्नेह संपन्नता के द्वार खोलती है। प्रो. सुरेखा तेलकर ने कहा कि प्रकृति उत्कृष्ट विद्यालय जो सिखाए किताबों से अधिक। पर्यावरण संरक्षण हमारे रवैए और अपेक्षाओं का आयना है। प्रो. रक्षा उपश्याम ने कहा कि शहद की मक्खी के विदा होने के चार साल बाद हम भी नहीं बचेंगे। प्राकृतिक संरक्षण ही मानवता का संरक्षण है। संजीवनी, निरंतरता को विराम। विरासत में अफरातफरी के सिवा और कुछ नहीं। मनुष्य की आत्मकेंद्रित स्वार्थों की गहरी जड़ें हैं अतः हम सनक से चेतें। हम जिनकी पूजा करते हैं, उनकी हमने क्या हालत कर डाली है, सोचनीय है। परिचर्चा में कॉलेज के छात्रों ने बढ़ चढ़कर हिस्सा लिया।

