संकलन - मोहिता जगदेव
उग्रप्रभा समाचार ,छिंदवाड़ा
कविता - बेटी का दर्द
इतने अभी तक नाराज क्यों हो पापा जी।बचपन वाला प्यार क्या भूल गए पापा जी।।
ऐसी क्या भूल की हमने हमें छोड़कर चले गए पापा जी।
कैसे बिताए परेशानियों के दिन क्या बताऊं पापा जी।
इतना भी न सोचा कि बिन बाप के
कैसे रहेंगे पापा जी।
कोई पूछता कब आएंगे पापा
अब आप ही बताइए क्या बोलूं पापा जी।
इतने अभी तक नाराज क्यों हो पापा जी।
बचपन वाला प्यार क्या भूल गए पापा जी।।
गोदी में तुम्हारी खेलकर, पीठ पर घुड़सवारी की बहुत याद आती पापा जी मुझे।
मम्मी के आंसू पोंछते पोंछते कैसे बड़े हो गए पापा जी।।
कसूर क्या था मम्मी का जो छोड़कर चले गए।
प्यार की जगह क्यों आंसूओं की धार दे गए।।
आज मेरी शादी है, कन्या दान के लिए नहीं आए पापा जी।
कैसे निमंत्रण कार्ड भेजूं, पता भी नहीं आपका पापा जी।।
इतने अभी तक नाराज क्यों हो पापा जी।
बचपन वाला प्यार क्या भूल गए पापा जी।।
फेसबुक में अपलोड कर दी हैं शादी की तस्वीरें।
पहचान जाओ तो दे दीजिए आशीर्वाद मुझे पापा जी।।
उम्मीद थी कि एक दिन
जरूर याद आएगी मेरी।
खोजते खोजते आकर गले
मुझको लगाओगे पापा जी ।।
सपना मेरा चूर चूर हो गया है पापा जी
ऐसा क्या कसूर बेटी का आपकी।
जो छोड़ने के लिए मजबूर हो गए
बताओ न पापा जी।।
सकुन से तो जी न सकी
मर तो सकूं सकुन से।
बेटी वैसे भी होती पराई
क्या जानकारी नहीं है पापा जी।।
इतने अभी तक नाराज क्यों हो पापा जी।
बचपन वाला प्यार क्या भूल गए पापा जी।।
हरि प्रकाश गुप्ता सरल
भिलाई छत्तीसगढ़
