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प्रो. रवींद्र नाफ़ड़े ने 26/01 2023 की गणतंत्र दिवस परेड के लिए मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ के छात्रों का किया नेतृत्व

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             मोहिता जगदेव

       उग्र प्रभा समाचार,छिंदवाड़ा

प्रो. रवीन्द्र नाफडे जी की उपलब्धी 

डी. डी.सी. कॉलेज के राष्ट्रीय सेवा योजना के जिला संगठक प्रो. रवींद्र नाफ़ड़ेजी ने 26/01/2023 की गणतंत्र दिवस परेड के लिए मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ के छात्रों का नेतृत्व किया

"हौसलों की आग से बुलंदियों के आसमां को नापा जा सकता है": प्रो. स्मिता हाबिल प्राचार्य डी.डी.सी. कॉलेज 

"नाफ़डे की कर्मसिद्धि फर्श से अर्श तक जाने की मिसाल है": प्रो. अमर सिंह 

"वाकिफ कहां है जमाना आपकी उड़ान से,

वे कोई और थे, जो हार गए आसमान से": 

"वैसे तो अधिकांश वक्त की जैसी हवा चले, वैसे मुड़ते चले जाते हैं,

कुछ एक ऐसे भी होते हैं, जो वक्त के सांचे बन जाते हैं"

उग्र प्रभा समाचार,छिंदवाड़ा: मध्यप्रदेश उच्च शिक्षा विभाग की अभावों में चमत्कार कर दिखाने वाली जिस साधारण सी शख्सियत ने स्वयं को अपने उत्कृष्ट कर्तव्य निर्वहन की दिव्य कार्यसिद्धि से इतना निखारा कि प्रतिफल में भारत राष्ट्र की सर्वोच्च सम्मानित रिपब्लिक डे परेड में मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ का नेतृत्व करने जैसा गौरवपूर्ण सौभाग्य मिला है। ऐसा घटित होने के पीछे एक पूरी जिंदगी भर का मिशनरी सम लक्ष्यकेंद्रित परिश्रम लगता है, वरना सभी को अपने कर्तव्य स्थल पर काम तो करते हैं ही सिर्फ उसी जगह पर बिना सम्मानित हुए रिटायर होने के लिए। उच्च शिक्षा विभाग की राष्ट्रीय सेवा योजना जैसी आर्थिक दृष्टि से विपन्न योजना में अपनी अमित सकारात्मकता से अपने छात्रों के साथ निशदिन सामाजिक सरोकारों की समस्याओं के निदान हेतु फोकस्ड होकर एक लंबे अरसे से निश्वार्थ कार्य करने का  पौराणिक कथाओं में उद्धरणीय जो धैर्य आदरणीय रवींद्र नाफ़डेजी के पास है, वह विरलों में से विरले में ही मिलता है। अपने जीवन में आए तमाम जानलेवा झंझावातों से अप्रभावित हुए आपने जिस ईमानदारी, निष्ठा, लगन, संकल्प, सौहार्द, सदाचार और सौजन्य से सुवासित सद्कर्मों के जो पहाड़ खड़े किए हैं, वे किसी भी अभाव में दबे किंतु आगे बढ़ने की तमन्ना दिल में दफनाए तरसते इंसान के लिए एक मील के पत्थर समान मार्गदर्शी भूमिका निभा सकते हैं। खासकर उन ग्रामीण परिवेश के आगे बढ़ने की लालसा लिए छात्रों के लिए जो उच्चशिक्षा विभाग में शिक्षा की तालीम के जरिए अपने वजूद को बढ़ाने के लिए अपने मां बाप के सपनों को साकार करने के लिए प्रवेश लेते हैं। जब हमारे बेशुमार कर्म  बुलंदियों को छूते हैं, तो परिणाम भी आसमानी ऊंचाइयां प्राप्त करते हैं ही।

आदरणीय रवींद्र नाफ़ड़ेजी आपकी सादगी ऐसी है कि दिलों को जीत लेती है, विनम्रता ऐसी है कि सामने वाले का समर्पण करवाके ही हटती है, और शालीनता ऐसी कि मनोवांक्षित प्रारब्ध निर्माण का मार्ग प्रशस्त करवा ही देती है। ऐसा लाखों में केवल एक ही होता है, जिसे दिल्ली के राष्ट्रपतिभवन और भोपाल के राजभवन की सीढ़ियां स्वयं पर किसी महापुरुष के पदांकित होने पर गर्व गौरव महसूस करती हैं। जिनके संस्कार ही निर्मित हुए हों पुरुषार्थ से, उसके प्रारब्ध को तवज्जो देने की भला कोई क्या हिमाकत कर सकता है क्या? जिसको चलना ही सिखाया हो ठोकरों ने, उसको गिराना मुश्किल है। जो बना ही हो आसमां को नापने के लिए हो, वह कभी भी जमीं नहीं नापता फिरता है। जिसकी मंजिल ही हो गगनचुंबी उत्कृष्टता छूने की, वो छत पर जाने वाली सीढ़ियां इस्तेमाल नहीं करता है। जो बने ही हैं इंसानियत को अलंकृत करने, वे मामूली उपलब्धि हासिल कर गुमराह नहीं होते हैं और जिन्हें ईश्वर ने भेजा ही है, इस दुनिया में अपना प्रतिनिधि बनाकर फरिश्ते के रूप में काम करने के लिए, वे अनावश्यक में उलझते नहीं हैं, मनुष्यता निर्माण की तुच्छ हरकतों वाली निंदित वैचारिकी में। अभी आपके लिए करने और प्राप्त होने को भविष्य के गर्भ में बहुत कुछ है, अपने मनुष्य होने की सभी संभावनाओं को चरम पर पहुंचाकर उच्चशिक्षा विभाग में अपने किरदार का निर्वहन ऐसा करते रहिए, जिसकी सदियों तक मिसाल दी जाए। आपने अपने पुण्य हाथों से अपने स्टेकहोल्डर छात्रों को अपनी अकूत व्यवहारी प्रखर बुद्धि से सार्थक जीवन जीने का जो कारगर प्रशिक्षण दिया है, उसके पुण्य की गूंज अवश्य ही उस पारब्रह्म परमात्मा तक पहुंच चुकी होगी और वह आपको बनाकर फक्र महसूस कर रहा होगा। जो दूसरों के लिए जीता है, वह अजातशत्रु होता है, उसे हराना असंभव ही नहीं, नामुमकिन भी होता है। आप यों ही अपनी सादगी के सम्राट बने रहो, आपको किसी भी कृत्रिमता का लबादा ओढ़ने के कवायद की कोई आवश्यकता नहीं है। जिसकी कर्म साधना ही आराधना है, उसे किसी भी औपचारिक अलंकार की जरूरत नहीं होती है। आपके मार्फत न जाने कितने रासेयो छात्रों ने राष्ट्रपति भवन, संसद भवन और राजभवन की सीढ़ियां चढ़कर अपने कीर्ति स्तंभों को अनंत ऊंचाइयां प्रदान की हैं। आपका उनके जीवन में होना अहोभाग्य की कहा जाएगा। उनके किसी ने शायद आदमी के तन के सदुपयोग के बारे में सही ही लिखा है, और आप उसको चरितार्थ करते हुए अनेकों में एक चरितार्थ करने वाले जीवंत उदाहरण हो:
 1." जो आए वतन के काम, आदमी दिलेर है वो, नहीं तो फक्त हड्डियों का ढेर है वो।" 

2. "हजारों साल नरगिस अपनी बेनूरी पर रोती है, तब कहीं चमन में जाकर होता है दीदावर पैदा।" 

3. "सीढ़ियां उनको मुबारक, जिनको छत पर जाना है, आपकी मंजिल आसमां है, सीढ़ियां ख़ुद बनाना है ।" 

4. "कौन कहता है कि आसमां में सुराख नहीं हो सकता, एक पत्थर तो तबियत से उछालकर मारो यारो।"

 5. "हम शाखा से लगे, वो मरियल पत्ते नहीं, जो हवा चले और हिल जाएं, कोई तूफानों से जाकर कह दे कि औकात में रहे।"

प्रो. अमर सिंह, राष्ट्रीय सेवा योजना अधिकारी,

शासकीय महाविद्यालय चांद छिंदवाड़ा मध्य प्रदेश।

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