हिंदी को रोमन में लिखना भाषा के साथ किया पाप है": डॉ. के. के. श्रीवास्तव
" दद्दाजी की बात खे, हँस खे मती उड़ाव, घी के मड़का खे बिटा, ठाड़े मत लुढ़काव।" अवधेश तिवारी
" काव्य की भाषा में अनुशासनहीनता बर्दाश्त नहीं है": रत्नाकर रतन
" भाषा के साथ अमर्यादित आचरण व्यक्ति को निर्वस्त्र कर देता है": प्रो. अमर सिंह
उग्र प्रभा समाचार छिंदवाड़ा: आंचलिक साहित्यकार परिषद की छिंदवाड़ा इकाई द्वारा स्थानीय पेंशनर्स सदन में हिंदी, संस्कृत, बुंदेली, उर्दू और मराठी भाषा से सजी यादगार सरस काव्यगोष्ठी संपन्न हुई। संस्था के अध्यक्ष अवधेश तिवारी ने बताया कि इस काव्यगोष्ठी में कवियों की रचनाओं के पाठ के साथ-साथ समसामयिक पर्वों, जयंतियों पर भी रचनाएँ प्रस्तुत की गईं। कार्यक्रम का शुभारंभ माँ वीणापाणी के छायाचित्र पर माल्यार्पण कर किया गया । श्री नंदकुमार दीक्षित द्वारा सरस्वती वंदना प्रस्तुत की गई।मुख्य अतिथि डॉ. के.के. श्रीवास्तव ने कहा कि हिंदी को रोमन में लिखना बड़ा पाप है। यदि कोई हिंदी को रोमन में लिखने की बात कहता है तो उससे ज्यादा बेहतर है कि हम अंग्रेजी को देवनागरी में लिखना शुरू कर दें। अध्यक्ष वरिष्ठ कवि रत्नाकर रतन ने कविता में स्वर, लय, शब्द चयन, उच्चारण और भाव के समुच्चय के अनुशासन पर जोर दिया।
आकाशवाणी के पूर्व उद्घोषक अवधेश तिवारी ने बुंदेली कविता यों पढ़ी " दद्दाजी की बात खें, हँस खे मती उड़ाव।घी के मड़का खे बिटा, ठाड़े मत लुढ़काव।" सौंसर के वरिष्ठ कवि एस. आर. शेंडे ने अपनी सरस मराठी कविता "पाप नाना तू करशी इथे माणसा" प्रस्तुत की। लक्ष्मणप्रसाद डेहरिया खामोश अपनी रचना कुछ यूं पढ़ा कि "वक्त मिल जाए तो नेकियां कर लो,जिंदगी कब मिली दोबारा है ." महेंद्र सिंह राजपूत ने जी भर के जियो और अनुज डहेरिया ने "आपका हमारा एक छंद हो": कविता पढ़ी। भोले प्रसाद नेमा चंचल ने अपनी कविता " दिखने लगे हैं दोस्त कुछ मेरे तनाव में, जब से ये हंसना आ गया है मेरे स्वभाव में "।

