【【● सुनयना मां ●】】
त्रेता में जो कहा नहीं, वह आज सुनाने आयी हूँ
युगों-युगों की पीड़ा को मैं तुम्हें बताने आयी हूँ।
जननी जनकनंदिनी मैं, तुमको कुछ बतलाने आयी हूँ।
जो जन्म लिया तुमने दोबारा अपनी भूल सुधारूँगी।
जो पहले मैं ना कर पाई वो साहस अब दिखाऊंगी।
सूर्य वंश में ब्याह पूर्व मैं तुमको सूर्य बनाउंगी।
रावण जैसे दुराचारी का वध तुम पल में कर सकती थी
पति को यश सम्मान मिले तुम उसे प्रेम समझती थी।
प्रतीक्षा करना छोड़ तुम्हें, मैं युद्ध कला सिखलाऊंगी,
हां, बेटी! मैं तुमको सूर्य बनाऊँगी।
दुष्चरित्र, कपटी मानव आज राम रूप में मिलते है,
संस्कारों में पली-बढ़ी जानकियों का वरण करते है,
आज भी जानकी उम्र भर साथ निभाती हैं,
जीवन अपना रावण में राघव ढूंढने में बिताती है,
जनकनंदिनी, मैं तुमको बहुरूपिये का परित्याग सिखलाऊंगी
दुनिया वाले तुमपर बेटी जब-जब प्रश्न उठाएंगे
न देना अग्नि परीक्षा, बस! तुमको यहीं बताना है
कब तक आखिर कब तक, तुम यह दुःख दोहराओगी,
माँ हूं, बेटी की स्वयं ढाल बन जाऊंगी।
सीता मिले बहु रूप में हर मानव का यह सपना है,
बेटों को भी राम बनाना, यह कर्तव्य जरुरी है,
स्वाभिमान श्रृंगार प्रथम हो यह तुमको बतलाना है।
बस, मैं जननी हूँ तुम्हारी पीड़ा मैंने पाई है।
वही आज हर माँ के दुःख का उत्तरदायी हैं,
द्रवित हृदय मन भारी है कुछ और न कह पाऊँगी
सूर्य वंश में ब्याह पूर्व मैं तुमको सूर्य बनाउंगी।
रचनाकार परिचय
नाम-- अनुभूति मिश्रा शर्मा (लेखिका, प्रेरक वक्ता,)
शैक्षणिक योग्यता -- पीएचडी अध्यनरत बरकत उल्लाह
विश्वविधालय भोपाल
@ स्वरचित @
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