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सूरदास जी की जयंती व मातृदिवस पर काव्य गोष्ठी का आयोजन

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संवाददाता - मोहिता जगदेव

उग्र प्रभा समाचार, छिंदवाड़ा

"सूरदास वात्सल्य रस के सृजन की पराकाष्ठा के कवि थे": प्रो. अमर सिंह 

"श्रृंगार के वियोगी पक्ष की अभिव्यक्ति में सूरदास का कोई सानी नहीं है:" रणजीत सिंह परिहार 

" नेह का दिया जले तो जग अंधियारा मिट जाए ": रत्नाकर रतन 

वो माँ ही होती है जिसकी वजह से हमारी दुनिया खूबसूरत होती है :मोहिता मुकेश *कमलेंदु*

उग्र प्रभा समाचार ,छिंदवाड़ा: समर्थ बाधित मित्र मंडल भारत माता छात्रावास नई आबादी छिंदवाड़ा में समिति के अध्यक्ष कमलेश साहू के संरक्षण में महाकवि सूरदास की जयंती पर आयोजित कवि गोष्ठी में मुख्य अतिथि बतौर बोलते हुए प्रो. अमर सिंह ने कहा कि सूरदास वात्सल्य रस के सृजन की पराकाष्ठा के कवि थे, आज भी बालपन के कुशल चितेरे सूरदास के बाल सुलभ नैसर्गिक सौंदर्य के पूर्ण चित्रण के कायल हैं। इसी आयोजन में परसराम डहेरिया के काव्य संग्रह " नीलम का पारस" का विमोचन किया गया जिसकी समीक्षा  श्रीमती मोहिता मुकेश *कमलेंदु* ने प्रस्तुत की। 
विशिष्ट अतिथि कवि रत्नाकर रतन ने अपनी रचना पढ़ी "नेह का तुम दिया जला दो, मन का अंधियारा मिट जाएगा"। साहित्य सेवी रणजीत सिंह परिहार ने कहा कि श्रृंगार के वियोगी पक्ष की अभिव्यक्ति में सूरदास का कोई सानी नहीं है। केशव प्रसाद कैथवास ने सूरदास को भक्तियुग का युग निर्धारक कवि बताया। राजेंद्र यादव ने शहीदों पर अपनी कविता यों पढ़ी "सूर्य चला अस्ताचल, पर मां की आंखें गम हैं।" कार्यक्रम के अध्यक्ष वरिष्ठ कवि लक्ष्मण प्रसाद डहेरिया ने अपनी कविता यों पढ़ी "हाथ में जो है, वही अपना है, बाकी सब जिंदगी का सपना है।"नंद कुमार दीक्षित ने अपनी कविता यों पढ़ी" भावों को सप्त रूप में आकार दीजिए, सद्भाव ठहर जाएं, आधार दीजिए।" रामलाल सराठे रश्मि ने अपने उद्गार यों व्यक्त किए "सारा सागर ले लो मुझसे, उसका थोड़ा जल दे दो, तुम्हीं सहेजो वर्तमान को, हमें हमारा कल दे दो।" विख्यात कवयित्री अंजुमन मंसूरी आरजू ने अपनी काव्य रचना पढ़ी "कब हमने अपनी तन्हाई को रो करके बर्बाद किया, हर आफ़त से टकराए और ख़ुद को ही फ़ौलाद किया"।


अनुराधा तिवारी ने बलिदनी त्याग पर ये शब्द पढ़े "तिरंगा जिनकी सांसों में बस, वो डर नहीं सकता, जो दिलों में राज करता है, वो कभी मर नहीं सकता"। मोहिता मुकेश कमलेंदु  ने मां की महत्ता पर यों प्रकाश डाला "माँ के चरणों की धूल, जबसे उड़कर मेरे माथे पर पहुँची है, तब से तो जैसे मेरी जिंदगी ही संवर गई है"। नंद कुमार दीक्षित ने सरस्वती वंदना के साथ पर्यावरण पर अपनी कविता पढ़ी। कवि सहादेव कोल्हे ने कहा "कहीं अर्थी को कांधा नहीं मिलता, तो कहीं बारात खड़ी होती है"। शंकरलाल साहू ने गीता दर्शन को स्वयं का स्वयं से उद्धार कर उतारा। कवि गोष्ठी का संचालन अंजुमन मंसूरी आरजू और कमलेश साहू ने संयुक्त रूप से किया।

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