असिस्टेंट प्रोफ़ेसर, कवियत्री एवं यूट्यूबर
छोटे शहर की लड़की
देखती है अक्सर बड़े सपने
गुज़रती है छोटी पथरीली गलियों से
पहुँचती है फिर मक़ाम पर अपने
छोटे शहर की लड़की,
सुनती है कई बार अनगिनत बातें,
बातें जो बातें ना होकर होते हैं ताने,
उसकी आँखों में रहता है एक ठहराव,
उसके दुपट्टे की तरह
ताकि कोई उसे चरित्रहीन ना माने,
किताबों के झरोखों से देखती है उस पार
यही हो जाता है फिर उसकी मंज़िल का आधार,
छोटे शहर की लड़की घिरी होती है अब भी उन्हीं बेड़ियों से,
वही बातें, वही रस्में, उन्हीं छोटी कड़ियों से
सब चाहते हैं उससे क्या जाने
वो उड़ती रहे निर्मुक्त आकाश में
बस अपने पर ना खोले।।
